Exclusive: नाम देखकर आ जाते हैं गोरखपुर एम्स, काम देखकर हो जाते हैं मायूस

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प्रतिदिन 40 से अधिक गंभीर मरीजों का गोरखपुर एम्स में बेहतर इलाज का सपना टूट रहा है। दूर-दराज से एम्स पहुंचने वाले गंभीर रोगों के मरीजों को दो टूक बताया जाता है कि यहां इलाज नहीं हो पाएगा। किसी विभाग में डॉक्टर नहीं हैं, तो किसी का ऑपरेशन थिएटर (ओटी) तैयार नहीं है। किसी विभाग में मशीनें नहीं हैं। जिन सामान्य रोगों के ऑपरेशन किए भी जा रहे हैं, उनके सामान बाहर से मंगाए जा रहे हैं।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) इसलिए स्थापित किया गया है कि इसमें गंभीर बीमारियों का इलाज हो जाएगा। लेकिन, उद्घाटन के एक साल बाद भी सभी विभागों का संचालन पूरी क्षमता से नहीं हो पा रहा है। सर्जरी, स्त्री एवं प्रसूति, हड्डी रोग और सामान्य नाक, कान, गले के ऑपरेशन को छोड़ दिया जाए तो बड़े विभागों के ऑपरेशन नहीं हो पा रहे हैं। हृदय रोग, मस्तिष्क और गुर्दा रोगियों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। इन मरीजों को एम्स से मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता है।  

 

एम्स का नाम सुनकर इलाज के लिए सबसे अधिक मरीज बिहार के छपरा, सिवान, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर सहित पूर्वांचल के कुशीनगर, आजमगढ़, मऊ, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, श्रावास्ती और बलरामपुर जिलों से आते हैं। एम्स से निराश होने वाले मरीजों और तीमारदारों के पास यही विकल्प बचता है कि वे निजी अस्पताल में महंगा इलाज कराएं या बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए इंतजार करें। अथवा किसी अन्य अस्पताल और शहर का रुख करें।

 

निजी अस्पतालों में इलाज महंगा, मेडिकल कॉलेज में लंबा इंतजार

निजी अस्पतालों में इलाज महंगा होने और बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑपरेशन के लिए लंबी प्रतीक्षा का दंश मरीजों और तीमारदारों को झेलना पड़ रहा है। मेडिकल कॉलेज के हर विभाग में ऑपरेशन के लिए लंबी वेटिंग है। हर दिन बीआरडी में चार हजार से अधिक की ओपीडी है। 100 से अधिक मरीज इमरजेंसी में इलाज के लिए आते हैं।

 

सर्जिकल सामान व दवाएं बाहर से मंगवा रहे

एम्स में अगर किसी मरीज का ऑपरेशन हो रहा है, तो सर्जिकल सामान और दवाइयां बाहर से मंगवा रहे हैं। तीमारदार को बाकायदा पर्ची दी जाती है और संबंधित दुकान का नाम व मोबाइल नंबर दिया जाता है। किसी और दुकान से सामान लाने की बात अगर तीमारदार कर देता है तो उसे चुप करा दिया जाता है।

एम्स मीडिया प्रभारी पंकज श्रीवास्तव ने कहा कि एम्स में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए मशीन नहीं है। इसकी मांग की गई है। इंप्लांट की सुविधा नहीं है। जल्द ही इसकी व्यवस्था की जाएगी। मरीज और उसके तीमारदार जहां से चाहें सामान खरीद सकते हैं।

 

केस-एक

नंदा नगर के रहने वाले संतोष पांडेय की पत्नी गिर गईं। जिला अस्पताल में दिखाने पर डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी। वह एम्स में इलाज के लिए आए। डॉक्टरों ने ऑपरेशन का फैसला लिया। नंदा नगर से घर नजदीक होने की वजह से एम्स में ऑपरेशन कराने के लिए तैयार हो गए। इस बीच डॉक्टर ने इंप्लांट के लिए एक पर्ची थमा दी और असुरन के एक दुकानदार का नाम और नंबर दिया।

केस-दो

रुस्तमपुर के आजाद चौक के रहने वाले संजीव कुमार की माता जी को आंख में दिक्कत थी। जिला अस्पताल गए तो डॉक्टरों ने मोतियाबिंद बताते हुए ऑपरेशन की बात कही। इसके बाद परिजन उन्हें लेकर एम्स चले गए। एम्स के डॉक्टर ने जांच की और मोतियाबिंद का ऑपरेशन करने की बात कही। मशीन और लेंस न होने का हवाला देते हुए बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया।



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