हाथरस के सासनी का अमरूद एनसीआर के अलावा आसपास के कई राज्यों में धाक जमाए हुए है। विभिन्न शहरों में सासनी के नाम से अमरूद बेचा जाता है। कुल मिलाकर सासनी का अमरूद फल बाजार में एक ब्रांड बनकर उभरा है। उद्यान विभाग भी इस क्षेत्र में अमरूद की खेती बढ़ाने पर अधिक जोर दे रहा है, ताकि इसकी ख्याति और अधिक बढ़ सके। खेदजनक पहलू यह है कि इसका रकबा बढ़ने की बजाय घटा है।
सासनी क्षेत्र में अमरूद की खेती लगभग छह दशक पूर्व शुरू हुई थी। धीरे-धीरे मांग बढ़ने पर यहां अमरूद की बागवानी बड़े पैमाने पर होने लगी। आज हालात यह हैं कि यहां सीर, सासनी, बाग सासनी, समामई रूहल, खेड़ा फिरोजपुर, रूदायन, धमरपुरा, लोहर्रा, भोजगढ़ी, तिलौठी, भूतपुरा सहित एक दर्जन से अधिक गांवों में अमरूद के बाग लगे हुए हैं, जिसमें वर्ष में दो बार बारिश व सर्दी के मौसम में अमरूद की पैदावार होती है।
बारिश की फसल अनुकूल मौसम न होने से ज्यादा अच्छी नहीं होती, इससे किसान केवल अपने खर्च आदि ही निकाल पाते हैं। वहीं सर्दी का अमरूद बेहद खूबसूरत व अच्छा उत्पादन देने के कारण पैदावार भी अधिक देता है। बाग के रखवाले दोपहर में अमरूद की तुड़ाई करने के बाद उसे छांटकर डिब्बों में पैक कर मंडी में ले जाते हैं।
दूसरे राज्यों तक है सासनी के अमरूद की खपत सासनी के अमरूद की खपत दूसरे राज्यों में भी है। अमरूद की छंटाई के बाद उसे पैक किया जाता है। जहां बाहर से आने वाले व्यापारी अमरूद की क्वालिटी के हिसाब से भाव तय करते हैं और यहीं से लदकर यहां का अमरूद राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब सहित देश के विभिन्न भागों में पहुंचता है और फिर वहां पर फुटकर व्यापारी सासनी के अमरूद के नाम से इसे बेचते हैं। इससे यह अमरूद दूसरे राज्यों में भी सासनी ब्रांड के नाम से पहचान बना चुका है।
पिछले कुछ वर्षों में अमरूद के बागानों में उखटा रोग ने अपने पांव पसार लिए हैं, जिसमें तने का ऊपरी भाग उचित भोजन न मिल पाने के कारण सूखना शुरू हो जाता है और धीरे-धीरे पूरा पेड़ ही रोग की चपेट में आकर सूख जाता है। इसके अलावा खेतों की दीमक भी पेड़ की जड़ों को खाकर उसे बेकार कर रही है। उखटा रोग फ्यूजेरियम फंगस से फैलता है। इसका कोई निदान नहीं है। रोगी पौधे को उखाड़कर फेंकने में ही भलाई है। ट्राइकोडर्मा को गोबर की खाद के साथ मिलाकर खेतों व पेड़ों की जड़ों में प्रयोग करने से इसका प्रकोप कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
अमरूद के बागों की स्थिति
2014-15 में 2820 हेक्टेयर
2015-16 में 2780 हेक्टेयर
2016-17 में 2660 हेक्टेयर
2017-18 में 2600 हेक्टेयर
2021-22 में 3000 हेक्टेयर
2022-23 में 2940 हेक्टेयर
उखटा सहित विभिन्न बीमारियां लगने पर किसान बागानों को उजाड़कर खेती करने में जुटे हैं। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड से प्रतिवर्ष नए बागान लगाने का लक्ष्य दिया जाता है। इस वर्ष 30 हेक्टेयर बागान लगाने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, जिसमें 17 हेक्टेयर अमरूद के बागान लगाए गए हैं। पौधों के पेड़ बनकर फल तैयार होने तक किसानों के लिए अनुदान की व्यवस्था है। रोग से पौधों को बचाने के लिए भी समय-समय पर शिविर लगाकर किसानों को जागरूक किया जाता है। -अनीता यादव, जिला उद्यान अधिकारी
बोले किसान अमरूद के बाग में कीट पैदा होने से फल में काफी नुकसान होता है। बारिश कम होने से भी अमरूद की फसल पर काफी असर हो रहा है। इस कारण बाग कम होते चले जा रहे हैं। -वीरपाल सिंह, नगला फतेला पानी की कमी, मौसम बदलने एवं अनियमित फसल का आने से कीट पैदा हो गए हैं। कोहरा पड़ने से कच्ची फल भी पेड़ से टूटकर गिर जाते हैं। किसानों को काफी नुकसान होता है। इस कारण बाग कम होते चले जा रहे हैं। -राजनलाल शर्मा निवासी रुदायन बारिश की कमी एवं क्षेत्र में पानी खराब होने से पेड़ों में दीमक लग जाती है। दीमक लगने से पेड़ सूख जाते हैं। मौसम निरंतर खराब रहता है। इस कारण फसल कम मात्रा में आती है। किसानों को काफी नुकसान होता है। -रामप्रकाश, किसान नगला गढू
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हाथरस के सासनी का अमरूद एनसीआर के अलावा आसपास के कई राज्यों में धाक जमाए हुए है। विभिन्न शहरों में सासनी के नाम से अमरूद बेचा जाता है। कुल मिलाकर सासनी का अमरूद फल बाजार में एक ब्रांड बनकर उभरा है। उद्यान विभाग भी इस क्षेत्र में अमरूद की खेती बढ़ाने पर अधिक जोर दे रहा है, ताकि इसकी ख्याति और अधिक बढ़ सके। खेदजनक पहलू यह है कि इसका रकबा बढ़ने की बजाय घटा है।
सासनी क्षेत्र में अमरूद की खेती लगभग छह दशक पूर्व शुरू हुई थी। धीरे-धीरे मांग बढ़ने पर यहां अमरूद की बागवानी बड़े पैमाने पर होने लगी। आज हालात यह हैं कि यहां सीर, सासनी, बाग सासनी, समामई रूहल, खेड़ा फिरोजपुर, रूदायन, धमरपुरा, लोहर्रा, भोजगढ़ी, तिलौठी, भूतपुरा सहित एक दर्जन से अधिक गांवों में अमरूद के बाग लगे हुए हैं, जिसमें वर्ष में दो बार बारिश व सर्दी के मौसम में अमरूद की पैदावार होती है।
बारिश की फसल अनुकूल मौसम न होने से ज्यादा अच्छी नहीं होती, इससे किसान केवल अपने खर्च आदि ही निकाल पाते हैं। वहीं सर्दी का अमरूद बेहद खूबसूरत व अच्छा उत्पादन देने के कारण पैदावार भी अधिक देता है। बाग के रखवाले दोपहर में अमरूद की तुड़ाई करने के बाद उसे छांटकर डिब्बों में पैक कर मंडी में ले जाते हैं।
दूसरे राज्यों तक है सासनी के अमरूद की खपत
सासनी के अमरूद की खपत दूसरे राज्यों में भी है। अमरूद की छंटाई के बाद उसे पैक किया जाता है। जहां बाहर से आने वाले व्यापारी अमरूद की क्वालिटी के हिसाब से भाव तय करते हैं और यहीं से लदकर यहां का अमरूद राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब सहित देश के विभिन्न भागों में पहुंचता है और फिर वहां पर फुटकर व्यापारी सासनी के अमरूद के नाम से इसे बेचते हैं। इससे यह अमरूद दूसरे राज्यों में भी सासनी ब्रांड के नाम से पहचान बना चुका है।