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ऐसे में सवाल है कि आखिर कैसे भाजपा के हाथों से हिमाचल प्रदेश निकल गया? इसके क्या मायने हैं? क्या अब भी भाजपा सरकार पास सरकार बनाने का कोई विकल्प बचा है? आइए समझते हैं…
इसे समझने के लिए हमने राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय कुमार सिंह से बात की। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में भाजपा की हार के तीन बड़े कारण को बताया। साथ में ये भी बताया कि क्या चुनाव हारने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी सरकार बना सकती है?
1. बगावत ने छीन ली सत्ता: हिमाचल प्रदेश में प्रत्याशियों के एलान के बाद सबसे ज्यादा बगावत भारतीय जनता पार्टी में दिखी। भाजपा के 21बागियों ने निर्दलीय ही चुनावी मैदान में ताल ठोक दी थी। कुछ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में भी चले गए। इसके चलते भाजपा के वोटों में बड़ी सेंधमारी हुई। इसका फायदा कांग्रेस को हुआ।
2. स्थानीय नेताओं से नाराजगी: स्थानीय नेताओं और मंत्रियों को लेकर लोगों के बीच काफी नाराजगी थी। बड़ी संख्या में लोगों का कहना था कि नेता उनकी बातें नहीं सुनते हैं। क्षेत्र में भी नहीं रहते। इसके बावजूद पार्टी ने टिकट दिया। कुछ प्रत्याशियों पर परिवारवाद का भी आरोप लगा। जैसे- मनाली के प्रत्याशी और शिक्षामंत्री गोविंद ठाकुर हैं। गोविंद के पिता भी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं। ऐसे में स्थानीय लोग उनसे काफी नाराज रहे।
3. महंगाई-बेरोजगारी का मुद्दा भी रहा अहम : कोरोना के बाद पूरे देश की आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया। हिमाचल प्रदेश के आय का स्त्रोत पर्यटन है। कोरोनाकाल में ये पूरी तरह ठप पड़ गया था। इसके बावजूद यहां के लोगों को कुछ राहत नहीं मिली। इस बीच, महंगाई और बेरोजगारी भी काफी बढ़ गई। इसके चलते भी लोगों में सरकार के खिलाफ काफी नाराजगी दिखी।
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