HP High Court: सीपीएस की नियुक्तियों को चुनौती देने के मामले में नोटिस की नहीं हो रही तामील

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HP High Court: Notice not being served in case of challenging CPS appointments

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला

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सीपीएस की नियुक्तियों को चुनौती देने वाले मामले में नोटिस की तामील नहीं हो रही है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने चार सीपीएस को जारी किए गए नोटिस की तामील के लिए दोबारा नोटिस जारी किया है। उप मुख्यमंत्री की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने याचिका का जवाब दायर करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश विरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 19 जून को निर्धारित की है। सीपीएस की नियुक्तियों को तीन याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई है। सबसे पहले वर्ष 2016 में पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस संस्था ने सीपीएस की नियुक्तियों को चुनौती दी थी। नई सरकार की ओर से सीपीएस की नियुक्ति किए जाने पर उन्हें प्रतिवादी बनाए जाने के लिए आवेदन किया गया।

उसके बाद मंडी निवासी कल्पना देवी ने भी सीपीएस की नियुक्तियों को लेकर याचिका दायर की है। भाजपा नेता सतपाल सत्ती ने उप मुख्यमंत्री समेत सीपीएस की नियुक्तियों को चुनौती दी है। अदालत सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही है, लेकिन अदालती नोटिस की तामील नहीं हो रही है। अभी तक उप मुख्यमंत्री समेत सिर्फ दो सीपीएस ने ही अदालत के नोटिस स्वीकार किए हैं। अर्की विधानसभा क्षेत्र से सीपीएस संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। सभी याचिकाओं में आरोप लगाया है कि पंजाब में भी ऐसी नियुक्तियां की गई थीं, जिन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने इन नियुक्तियों को असांविधानिक ठहराया था।

हाईकोर्ट 2005 में भी रद्द कर चुका है नियुक्तियां

वर्ष 2005 में हाईकोर्ट ने सीपीएस की नियुक्तियों को असांविधानिक बताते हुए रद्द किया था। उसके बाद हिमाचल सरकार ने संसदीय सचिव अधिनियम, 2006 बनाया। सुप्रीम कोर्ट ने बिमोलंग्शु राय बनाम असम सरकार के मामले में 26 जुलाई, 2017 को असम संसदीय सचिव अधिनियम 2004 को असांविधानिक ठहराया था। इस फैसले के बाद मणिपुर सरकार ने संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन और भत्ते और विविध प्रावधान) अधिनियम, 2012 को वर्ष 2018 में संशोधित किया। वर्ष 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार बनाम सूरजा कुमार ओकराम के मामले में इस अधिनियम को भी असांविधानिक करार दिया।

 

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