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आज दिल्ली में NDA और बेंगलुरू में विपक्षी एकता की बैठक है।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
23 जून को बिहार में जब विपक्षी एकता की बैठक हो रही थी तो सभी को संपूर्ण क्रांति के अग्रदूत जय प्रकाश नारायण की याद आई थी। सभी नेताओं ने यह कहा था कि सत्ता के खिलाफ संघर्ष की सबसे बड़ी क्रांति एक बिहारी ने शुरू की थी और बिहार की राजनीतिक धमक देशभर में सुनाई देती है। और, आज यानी 18 जुलाई अब एक ऐसी तारीख के रूप में दर्ज हो रही है जब सत्ता और विपक्ष- दोनों के केंद्र में बिहारी है। सत्ता पक्ष, यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की दिल्ली में हो रही बैठक में असल चर्चा बिहारियों के आसपास घूमेगी तो बेंगलुरु में विपक्षी एकता को लेकर हो रही बैठक ही बिहारी नेताओं की देन है। करीब 2200 किलोमीटर की दूरी में हो रही दोनों ही बैठकें देश की राजनीतिक दिशा तय करेंगी।
जन्म-शिक्षा से बिहारी नड्डा देखेंगे, कैसे सबसे बड़ी जीत दुहराएं
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा जन्म से बिहारी हैं। पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पार्टी के बड़े फैसले जरूर लेते हैं, लेकिन नीतिगत कागज पर मुहर नड्डा की ही लगती है। नड्डा ने स्नातक तक की पढ़ाई भी पटना विश्वविद्यालय से की है। मंगलवार को दिल्ली में होने वाली बैठक में उन्हें बिहार के मुद्दों पर फोकस इसलिए भी करना है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां की 97.5 प्रतिशत सीटें राजग के खाते में आई थीं। कुल 40 सीटों में से 39 सीटें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर हुई वोटिंग में हासिल हुई थी। चेहरा अब भी नरेंद्र मोदी ही हैं, लेकिन बिहार की राजनीतिक परिस्थितियां बदली हुई हैं। जिस जनता दल यूनाईटेड (JDU) को भाजपा ने अपने बराबर 17 सीटें दी थीं, वह अब भाजपा-विरोधी दलों की एकता की धुरी है। बिहार में भाजपा ने 17 की 17 सीटें जीती थीं। जदयू के 17 में से 16 सांसद बने थे। इसके अलावा, छह सीटें दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को दी गई थीं और सभी पर इसकी जीत हुई थी। इसलिए, पिछले चुनाव में सबसे बड़ी जीत दिलाने वाले प्रदेश की ताजा परिस्थिति को लेकर एनडीए की बैठक में सबसे ज्यादा माथापच्ची होनी है।
जन्म-कर्म से बिहारी नीतीश-लालू विपक्षी एकता की धुरी बने
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ देशभर के भाजपा-विरोधी दलों को एक करने का अभियान इस बार बिहार से शुरू हुआ। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ सरकार के लिए जनादेश लेने के बाद गतिरोध के कारण अचानक वापस महागठबंधन में जाने के बाद से मुुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोला था। नीतीश कुमार ने ही इस बार सभी विपक्षी दलों को एक-एक कर एक मंच पर जुटने के लिए तैयार किया। जन्म-कर्म से बिहारी नीतीश ने बिहार-यूपी से चिढ़ दिखाते रहे महाराष्ट्र के नेताओं को भी बिहार बुला लिया। जहां कुछ मामला फंसा, वहां राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने उनका साथ दिया। 23 जून को पटना में विपक्षी एकता को लेकर हुई पहली बैठक में नीतीश कुमार ने संयोजक की भूमिका निभाई, हालांकि पद की घोषणा बाकी रह गई। आज बेंगलुरु में हो रही बैठक में सबकुछ ठीक रहा तो यह घोषणा अप्रत्याशित नहीं।
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एनडीए की बैठक में इन बिहारियों पर ही अहम फैसला
मंगलवार को दिल्ली में हो रही बैठक के दौरान भी बिहारियों को लेकर ही अहम फैसला होना है। सबसे बड़ा फैसला चिराग पासवान की भूमिका को लेकर होना है। चिराग पासवान अपने दिवंगत पिता रामविलास पासवान की जगह केंद्रीय मंत्री नहीं बनाए जा सके थे, जबकि वह सांसद भी थे और सबसे मजबूत दावेदार भी। तब पेच इसलिए फंसा था, क्योंकि बिहार के चुनाव में संतोषजनक सीट नहीं मिलने पर चिराग ने जदयू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। चिराग ने कथित तौर पर भाजपा की नीति के तहत जदयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारे, जिसके कारण नीतीश कुमार की पार्टी बिहार विधानसभा में तीसरे नंबर पर उतर गई। नीतीश के साथ रहने के कारण भाजपा ने चिराग को एनडीए से अलग जाने दिया। चिराग अपने पिता की पार्टी भी नहीं बचा सके और चाचा पशुपति कुमार पारस के धरे को लोजपा (राष्ट्रीय) का नाम मिल गया, जबकि उनके हाथ नाम आया लोजपा (रामविलास)। लोजपा के छह में से पांच सांसद लोजपा (राष्ट्रीय) के साथ रह गए। चाचा पारस को केंद्रीय मंत्री का पद और भतीजे चिराग को कुछ नहीं। अब इसकी भरपाई का समय है और चाचा पारस बिफरे हुए हैं। इन दोनों के बीच एनडीए में सुलह होनी है। इसके अलावा एनडीए सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री रह चुके उपेंद्र कुशवाहा भी बैठक में रहेंगे। वह खुद एनडीए के मंत्री रहते पद छोड़कर गए थे। अब लौट रहे हैं तो बिहार से ही स्वजातीय नेता नागमणि की राजग में एंट्री से नाखुश हैं। भाजपा को पारस-चिराग पासवान और नागमणि-उपेंद्र कुशवाहा के बीच पंचायत भी निपटानी है। बैठक में बिहार का मंत्रीपद छोड़कर एनडीए में आए संतोष कुमार सुमन के पिता व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को लेकर भी कुछ फैसला होगा। वह भी बैठक में रहेंगे।
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