INDIA Opposition : नीतीश-लालू बेंगलुरु से गायब, पटना पहुंचकर चुप; किस स्वाद की पक रही खिचड़ी

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Opposition Unity : Nitish Kumar, Lalu Yadav, Tejashwi reached Patna from Bangalore; convenor, India, Bihar

विपक्षी एकता की बैठक के बाद महागठबंधन के नेताओं ने मीडिया से बातचीत नहीं की।
– फोटो : अमर उजाला

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वैसे, फिज़ा में ऐसी आशंका थी ही। विपक्षी एकता की बैठक के लिए इस प्रयास के अगुआ नीतीश कुमार का इतनी देर से जाना। जाने से पहले उनकी चुप्पी। उनके ‘बड़े भाई’ लालू प्रसाद का भी स्वभाव के खिलाफ बगैर कुछ बोले बेंगलुरु निकलना। पटना में पहली बैठक कराते समय 18 दलों को एकजुट करने के प्रयासों को बार-बार दुहराने वाले ललन सिंह का मौन। हर तरफ सन्नाटा जैसा था। पटना जैसे अंदाज में भी बेंगलुरु की बैठक होती तो लालू यादव जरूर मीडिया से मिलते। वह भी नहीं हुआ। बाकी बैठे, यह लोग निकल लिए। सेर पर सवा सेर यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों को जुटाने वाले नीतीश कुमार के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व वाले कर्नाटक में राहुल गांधी के बगल में होर्डिंग-पोस्टर! किस स्वाद की खिचड़ी पक रही, यह नीतीश कुमार या लालू प्रसाद यादव ने पटना आकर भी नहीं बताया। मीडिया स्टैंड ताकता रह गया। क्यों?

नीतीश ने क्या किया और कांग्रेस ने क्या होने दिया

बिहार में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने देशभर के भाजपा विरोधी दलों को जुटाने का प्रयास शुरू किया तो 12 जून की तारीख रखी गई। कांग्रेस ने जोर का झटका ऐसा दिया कि तारीख टालनी पड़ी। मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि हर पार्टी के अध्यक्ष या प्रमुख नेता के आए बगैर बैठक का मतलब नहीं। फिर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भी तैयारियों में जुटे। कांग्रेस के नंबर वन नेता राहुल गांधी के साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिार्जुन खरगे का आना पक्का हुआ तो 23 जून की तारीख रखी गई। मुख्यमंत्री की सख्त मनाही के कारण जनता दल यूनाईटेड (JDU) के नेताओं ने कहीं भी उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार नहीं बताया। ऐसा कोई पोस्टर-बैनर नहीं लगा। यहां तक कि विपक्षी एकता की बैठक के मूल पोस्टर-बैनर में भी नीतीश या लालू की तस्वीर राहुल गांधी से बड़ी नहीं लगी। लेकिन, बेंगलुरु में क्या हुआ? नीतीश को अविश्वसनीय बताने वाले होर्डिंग-पोस्टर सड़कों पर वहां भी नजर आए, जहां राहुल गांधी के बड़े-बड़े पोस्टर थे। 

हाईजैक की चर्चा पहले पोस्टर के साथ ही

बैठक की तस्वीरों को भी ध्यान से देखेंगे तो ‘हाईजैक’ साफ दिखेगा। तीन ही नेताओं की तस्वीरें प्रमुखता से थीं- सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे। इसी कारण मंगलवार सुबह से इसे ‘हाईजैक’ के नजरिए से भी देखा जा रहा था, क्योंकि नीतीश-लालू समेत बाकी सारे नेता भी गोल घेरे में छोटी तस्वीरों के अंदर कैद थे। 23 दलों के एक-एक नेता छोटे आकार में और कांग्रेस के तीन नेता बड़े आकार में नजर आ रहे थे। और तो और, इस विपक्षी एकता के प्रयास की शुरुआत जिस जनता दल यूनाईटेड (JDU) के नाम पर हुई, उसके अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की तस्वीर भी नहीं थी। 

संयोजक तो बनाना ही था, क्यों नहीं बनाया?

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) जब बना, तब इसके भी संयोजक बनाए गए। शरद यादव लंबे समय तक इस भूमिका में सक्रिय रहे। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की चेयरपर्सन सोनिया गांधी बनी हुई ही हैं। पटना में 23 जून को बैठक के दौरान नीतीश कुमार की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संयोजक के रूप में सराहना भी की। लेकिन, संयोजक का नाम उस दिन घोषित होते-होते रह गया। माना गया कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के रूठ जाने के कारण यह घोषणा नहीं हो सकी। यह तब भी माना गया था और बेंगलुरु में 17-18 जुलाई को हुई इस बैठक के बाद भी वही मानने जैसा अंतिम विकल्प सामने है। ऐसा इसलिए क्योंकि नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव समेत बिहार से गई महागठबंधन की पूरी टीम मीडिया के सामने नहीं गई। फ्लाइट के नाम पर निकल आई। 

हाईजैक के कई बिंदु हैं, वजह भी कांग्रेस लग रही

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो “नीतीश को लेकर अविश्वास की बातें अपनी जगह हैं, लेकिन मौजूदा प्रयास ही उनकी देन है। ऐसे में यह भूमिका औपचारिक रूप से नीतीश को ही दी जानी चाहिए थी। नहीं देने के पीछे यूपीए चेयरपर्सन का पद हटाकर INDIA अध्यक्ष का पद बनाने जैसी बात हो सकती है।” इसके अलावा, यह भी सोचने वाला प्रश्न है कि जब वाम दल के अग्रणी नेता डी. राजा ने देशभक्त लोकतांत्रिक गठबंधन (Patriotic Democratic Alliance) का नाम पक्का होने की जानकारी दी थी तो घोषणा से पहले किसके दबाव में नाम बदलकर Indian National Developmental Inclusive Alliance (INDIA) रखा गया। विश्लेषकों के अनुसार सभी विपक्षी दल इसपर मौन सहमति दिखा रहे, लेकिन ऐसा लगता है कि वामदलों या ममता बनर्जी की राय से अलग यह नाम भी कांग्रेस ने सुझाया है।

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