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Jivitputrika Vrat 2022: मिथिला में जितिया व्रत का पर्व कल से शुरू हो जाएगा. जितिया व्रत की तिथि को लेकर इसबार लोग कन्फ्यूज भी हो रहे है. बतादें कि आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जिवित्पुत्रिका अष्टमी कहा जाता है. इस अष्टमी तिथि में पुत्र-सौभाग्य प्राप्ति की कामना से महिलाएं बहुत ही श्रद्धा एवं तत्परता से व्रत और जीमूतवाहन की पूजा अर्चना करती हैं. यह व्रत सम्पूर्ण अष्टमी तिथि में होता है और अष्टमी के अंत होने पर नवमी तिथि में पारण होता है. क्योंकि, भविष्य पुराण में इस अष्टमी तिथि में अन्न जल ग्रहण करना निषेध कहा गया है. इस वर्ष जितिया व्रत सम्पूर्ण मिथिला में 17 सितम्बर दिन शनिवार से शुरू होकर 18 सितम्बर दिन रविवार के अपराह्न 4 बजकर 49 मिनट तक रहेगा और उसके बाद पारण होगा. लेकिन, बनारस पंचांग में यह व्रत 18 सितम्बर दिन रविवार को करने का निर्णय दिया है, क्योंकि उसने उदयव्यापिनी अष्टमी को आधार माना है. इस दुविधा को दूर करने के लिए शारदा भवन संस्कृतोच्च विद्यालय नवानी मधुबनी बिहार के सहायक शिक्षक पंडित देवानन्द मिश्र से प्रभात खबर ने निम्न तथ्यों पर खास बातचीत की…
प्रदोषव्यापिनी अष्टमी में व्रत करने की मान्यता
मिथिला में यह व्रत प्रदोषव्यापिनी अष्टमी में करने की मान्यता है, जिसे विभिन्न आर्ष ग्रंथों ने भी प्रतिपादित किया है. यथा –
भविष्यपुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि –
इयं अष्टमी प्रदोषव्यापिनी ग्राह्या।
प्रदोष समये स्त्रीभिः पूज्यो जीमूतवाहनः।
पुष्करिणीं विधायाथ प्रांगणे चतुरस्रिकाम्।।
अर्थात – यह अष्टमी प्रदोषव्यापिनी ही ग्राह्य है. इसके पिछे का तथ्य यह है कि इस व्रत के प्रमुख देवता श्री जीमूतवाहन की पूजा
प्रदोष काल में ही करने का विधान है.
प्रदोष काल में ही जीमूतवाहन की पूजा करने का विधान
विष्णु धर्मोत्तर ग्रंथ में भी इसे ही प्रतिपादित किया गया है –
पूर्वेद्युरपरेद्युर्वा प्रदोषे यत्र चाष्टमी।
तत्र पूज्यः सदा स्त्रीभिः राजा जीमूतवाहनः।।
स्पष्ट है कि पूर्व दिन वा पर (अगले) दिन, प्रदोष काल में जिस दिन अष्टमी रहे उसी दिन स्त्रियों के द्वारा व्रत पूर्वक प्रदोष काल में ही जीमूतवाहन की पूजा करनी चाहिए.
इसी प्रकार तिथि चंद्रिका में भी म. म. पक्षधर मिश्र का भी वचन द्रष्टव्य है
-सप्तम्यामुदिते सूर्ये परतश्चाष्टमी भवेत्।
तत्र व्रतोत्सवं कुर्यात् न कुर्यादपरेऽहनि ।
जानें सप्तमी युक्त अष्टमी व्रत का कारण
यहां भी स्पष्ट है कि यदि सूर्योदय समय में सप्तमी हो और अगले दिन अष्टमी हो तो सप्तमी के दिन ही व्रत उत्सव पूर्वक करना चाहिए, ना कि अगले दिन उदया अष्टमी में. इसी प्रकार का वचन तिथि तत्त्व चिंतामणि में भी आया है. म. म. महेश ठाकुर भी इसी वचन को प्रतिपादित करते हैं कि जिस दिन प्रदोष काल में अष्टमी तिथि हो उसी दिन यह व्रत करना चाहिए. यदि दोनों दिन प्रदोष काल में अष्टमी तिथि हो तो भी सप्तमी युक्त अष्टमी अर्थात पूर्व दिन ही यह व्रत करना चाहिए.
जानें व्रत परण करने की सही जानकारी
म. म. अमृतनाथ झा के कृत्यसार समुच्चय के पृष्ठ संख्या 19 में भी इन सभी आर्ष वचनों को समाहित कर पूर्व दिन के प्रदोषव्यापिनी अष्टमी को ही प्रतिपादित किया गया है. इस व्रत का सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आश्विन कृष्ण पक्ष के इस अष्टमी तिथि में अन्न जल ग्रहण करना एकदम वर्जित है.
आश्विनस्यासिताष्टम्यां याः स्त्रियोऽन्नञ्च भुञ्जते।
मृतवत्सा भवेयुस्ता विधवा दुर्भगा ध्रुवम्।।
अर्थात आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि में जो स्त्री अन्न ग्रहण करती है. वह मृतवत्सा और विधवा जैसी दुर्भाग्य को प्राप्त होती है.
अस्तु! उपरोक्त सभी तथ्यों और आर्ष वचनों को देखने से स्पष्ट होता है कि इस वर्ष जीमूतवाहन का यह व्रत 17 सितम्बर (शनिवार) को सूर्योदय से प्रारंभ होकर 18 सितम्बर (रविवार) अपराह्न 4:49 तक रहेगा और अपराह्न 4:49 के बाद पारण होगा. यही समुचित और शास्त्रसम्मत निर्णय है.
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