Joshimath: शहर में सीवर लाइनें न होने से नुकसान, 47 साल से जोशीमठ का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों की रिपोर्ट

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पिछले 47 साल से जोशीमठ का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक शहर में सीवर लाइनें न होने के नुकसान बता रहे हैं। अब तक जितनी भी रिपोर्ट आईं, सभी में इस पर जोर दिया गया, लेकिन सरकारों ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।

दो साल पहले पेयजल निगम ने जो 100 करोड़ रुपये से ऊपर का प्रस्ताव बनाया था, वह फाइलों में कैद होकर रह गया।

जोशीमठ के लिए पेयजल निगम ने दो साल पहले सीवर लाइनें बिछाने के लिए करीब 100 करोड़ का प्रस्ताव बनाया था। प्रस्ताव नमामि गंगे को भेजा गया था। तब नमामि गंगे ने केवल दो सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की स्वीकृति दी थी, जो शुरू हो चुके हैं। सीवर नेटवर्क का प्रावधान इस योजना में न होने का हवाला दिया गया था। लिहाजा, यह प्रस्ताव फाइलों में ही धूल फांकता रह गया। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सरकार समय से सीवर नेटवर्क बिछा देती, तो जोशीमठ के शायद आज ये हालात न होते।

47 साल से चेता रहे हैं वैज्ञानिक

सबसे पहले 1976 में मिश्रा कमेटी ने जोशीमठ की जो रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, उसमें इस शहर में सीवर नेटवर्क की जरूरत बताई थीं। इसके बाद 2010 में एमपीएस बिष्ट की रिपोर्ट में भी इस बात पर जोर दिया गया था। पिछले साल जुलाई में गढ़वाल विवि के पांच प्रोफेसर ने अपनी रिपोर्ट में सीवर नेटवर्क पर जोर दिया। नवंबर 2020 में आई डॉ. पीयूष रौतेला की रिपोर्ट में भी सीवर नेटवर्क को जरूरी करार दिया गया। 

केंद्र की इमदाद पर ही निर्भर है राज्य

जोशीमठ हो या अन्य शहर, राज्य सरकार यहां सीवर नेटवर्क लगाने, सीवर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने जैसे कार्यों के लिए केंद्र सरकार पर ही निर्भर है। पेयजल विभाग सीवर लाइन बिछाने का काम करता है, जिसका सालभर का बजट ही करीब 200 करोड़ होता है। ऐसे में 100 या 200 करोड़ की सीवर लाइन बिछाना कैसे संभव होगा। लिहाजा, राज्य सरकार ज्यादातर केंद्रीय इमदाद से ही सीवर बिछाने पर फोकस करती है।

दो साल पहले पेयजल विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर नमामि गंगे को भेजा था। नमामि गंगे के नियमों में सीवर नेटवर्क का प्रावधान नहीं था। लिहाजा, केवल दो एसटीपी ही बन पाए थे, जो शुरू हो चुके हैं। 

-उदयराज सिंह, एमडी, पेयजल निगम

बजट के अभाव में जमीन में सालों से समा रहा सीवर

जोशीमठ में सीवर लाइनें बिछाने, पानी की निकासी की योजना के लिए प्रस्ताव तो बने, लेकिन बजट के अभाव में योजना परवान नहीं चढ़ पाई। नतीजतन वर्षों से जोशीमठ की जमीन में सीवर समा रहा है।

स्थानीय स्तर पर दो बार बना प्रस्ताव

2019 में गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई की ओर से केंद्र सरकार को जोशीमठ में सीवर कार्यों के लिए 78 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भेजा, लेकिन बजट नहीं मिल पाया। 2020 में शासन को 32 करोड़ का प्रस्ताव फिर भेजा गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो पाई।



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