Jyotish Shastra: सूर्य अगर लग्न में हो, तो शुभ होता है या अशुभ, जानें काला रंग को क्यों माना गया है अशुभ

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सूर्यदेव

Jyotish Shastra: प्रथम भाव यानी लग्न में सूर्य हो तो ऐसे व्यक्ति भावुक होते हैं. इनके स्वभाव में नाटकीय रूप से उग्रता और मृदुता दोनों दृष्टिगोचर होती है. ऐसे लोग सुनी-सुनायी बातों पर सरलतापूर्वक यकीन नहीं करते. इनकी देह में अक्सर भारीपन आने लगता है और लचीलापन कम होने लगता है, जिससे इन्हें कभी-कभी मांसपेशियों में पीड़ा की शिकायत होती है. यह स्थिति पिता के सुख में कुछ कमी का कारक बनती है. ऐसे लोगों को श्रेय जरा देर से मिलता है.

मनी प्लांट

मनी प्लांट कैसा फल देता है?

सामान्य रूप से लोग मनी प्लांट को समृद्धि का कारक मानते हैं, पर सत्य यह है कि यदि कुंडली में बुध अच्छा नहीं हो तो घर में मनी प्लांट लगाने से घर की बेटियां और बहनें संघर्षमय जीवन व्यतीत करती हैं और अपार कष्ट पाती हैं. ऐसा पारंपरिक मान्यताएं कहती हैं.

कुंडली में ग्रहों का प्रभाव

कुंडली में त्रिकोण का स्वामी अगर पाप ग्रह हो तो कैसा होगा?

कुंडली में लग्न, पंचम व दशम भाव को त्रिकोण कहा जाता है. त्रिकोण के स्वामी शुभ ग्रह हों या पाप ग्रह, सदैव शुभ और उत्तम फल ही प्रदान करते ह

काला रंग

काला रंग अशुभ क्यों माना जाता है?

कोई भी रंग सबके लिए सार्वभौमिक रूप से शुभ या अशुभ हर्गिज नहीं हो सकता. ऐसी मान्यतायें देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं. ज्योतिषिय मान्यताओं के अनुसार, काले रंग का संबंध शनिदेव से है. यदि कुंडली में शनि तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में आसीन हो तो काला रंग बेहद शुभ फल प्रदायक बन जाता है, पर यदि शनि अष्टम और द्वादश भाव में हों तो काला रंग कष्ट का कारक बन सकता है. अतः इस रंग पर ही नहीं, बल्कि किसी भी रंग पर एक तरफा शुभ-अशुभ का लेबल चस्पा नहीं किया जा सकता. प्रचलित मुंहबोली बातों, संदेहों और धारणाओं का अक्सर कोई आधार नहीं होता.

कुंडली में विवाह का योग

कुंडली में विवाह योग है या नहीं

आपकी राशि कन्या और लग्न कुंभ है. आपकी कुंडली में पराक्रमेश और कर्मेश मंगल अष्टम भाव में आसीन होकर आपको मांगलिक बना रहा है, वहीं लाभेश और धनेश वृहस्पति की युति आपके स्वभाव को लचीला न बनाकर, झुंझलाहट व आक्रामकता से युक्त करके विवेकहीनता प्रदान कर रही है. विधाता का संकेत ही कि थोड़े से प्रयास से आपका पुनर्विवाह संभव तो है, पर कुंडली मिलान एक अनिवार्यशर्त है. नियमित रूप से वर्जिश, भ्रमण, प्राणायाम व ध्यान के साथ मस्तक, नाभि व जिह्वा पर केसर मिश्रित जल का लेप लाभ प्रदान करेगा, ऐसा ज्योतिष की पारंपरिक मान्यतायें कहती हैं.

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