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ऐसे होती है करमा पूजा
पूजा के दिन बहनें नए वस्त्र पहनकर, पैरों में अलता लगाती है. इसके बाद शाम के समय गांव के बड़े बुजुर्ग नए वस्त्र पहनकर मंदार बजाते, नाचते गाते हुए करम डाली काट कर लाते है. वहां पहुंचकर करम पेड़ का पूरे श्रद्धा से पूजा-अर्चना करके पेड़ पर चढ़कर तीन डालियां काटता है और साथ ही डाली लेकर पेड़ से उतरता है इसमें यह भी ध्यान रखा जाता है कि करम डाली जमीन पर गिरे नहीं.
करमा पूजा की मान्यता
ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को बहने भाइयों के लिए करती है. इसके अलावा यह प्रकृति का भी प्रतीक के रूप में जाना जाता है. बहनें अपने भाईयों के सुख-समृद्धि एवं दीर्घायु होने की कामना इस दिन करती हैं.
करमा पर्व में किए जाते हैं ये काम
करमा पर्व के कुछ दिन पूर्व युवतियां नदी या तालाब से बालू उठाती है. नदी या तालाब से स्वच्छ एवं महीन बालू उठाकर डाली में भरती है. इसमें सात प्रकार के अनाज भी बोती है, जौ, गेहूं, मकई, धान, चना, उरद, कुलथी आदि एवं किसी स्वच्छ स्थान पर रखती हैं.
ऐसे होती है करमा पूजा की शुरूआत
तीज का डाला अहले सुबह नदियों व तालाबों में विसर्जन किया जाता है. वहीं शाम को कुंवारी बहनों के द्वारा करमा का डाला स्थापित किया जाता है. कुंवारी बहनें अपने-अपने घरों से गीत गाते हुए बांस के डाला लेकर नदी व तालाब पहुंचती हैं. जहां वे स्नान कर नदियों व तलाबों से डाला में बालू लाकर अखाड़ों में सारी बहनें बैठती हैं. उसी दौरान डाला में विभिन्न तरह के बीजों को जौ के साथ बुनती हैं.
करमा पर्व क्यों मनाया जाता है
झारखंड राज्य में यह दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व करम पर्व होता है जिसे इस कामना से मनाया जाता है कि लगाया गया फसल अच्छा हो और पहला सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व है सरहुल जिस समय पेड़ पौधों में नए-नए फूल और पत्तियाँ आना शुरू होती हैं उसी समय सरहुल पर्व मनाया जाता है.
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