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कर्नाटक विधानसभा चुनाव में एक बार फिर महाराष्ट्र के सीमावर्ती जिले बेलगाम में मराठी भाषा और संस्कृति की अस्मिता का तड़का लगा है। जिसका सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हो सकता है। महाराष्ट्र एकीकरण समिति के उम्मीदवार मराठी मुद्दे पर चुनाव मैदान में हैं। अगले हफ्ते शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी के नेता उनके लिए वोट मांगेंगे। इससे माना जा रहा है कि बेलगावी में ठाकरे की शिवसेना और एनसीपी भाजपा का खेल बिगाड़ सकती है।
कर्नाटक में बेंगलुरु के बाद बेलगावी में विधानसभा की सर्वाधिक 18 सीटें हैं। पिछले दो दशक से यह भाजपा का गढ़ रहा है। यहां लिंगायत समुदाय के अलावा मराठीभाषियों की संख्या सर्वाधिक 40 फीसदी है। यहां के मराठीभाषी बीते 63 साल से बेलगावी का महाराष्ट्र में विलय करने की मांग कर रहे हैं। जिले की 18 में से पांच सीटों (बेलगावी दक्षिण, बेलगावी उत्तर, बेलगावी ग्रामीण, खानापुर, निपाणी) पर महाराष्ट्र एकीकरण समिति ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जो मराठी भाषा और संस्कृति के नाम पर वोट मांग रहे हैं। दो दिन पहले एम ए समिति के कई पदाधिकारी मुंबई आए और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से मिले। पवार ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल सहित दो से तीन नेताओं को बेलगावी चुनाव प्रचार में भेजने का आश्वासन दिया है। वहीं, शिवसेना (उद्धव गुट) के सांसद संजय राउत ने भी मई के पहले हफ्ते में बेलगावी जाने का आश्वासन दिया है।
आयोग ने मराठी में भी उपलब्ध कराई मतदाता सूची
पहले मतदाताओं की सूची सिर्फ कन्नड़ भाषा में जारी की जाती थी, लेकिन इस बार एमए समिति की मांग पर निर्वाचन आयोग ने वेबसाइट पर मराठी भाषा में भी मतदाता सूची उपलब्ध कराई है। एमए समिति बेलगाम, कारवार और निपाणी सहित 814 मराठी भाषी गांव को महाराष्ट्र में शामिल किए जाने की मुखर समर्थक है। उनकी मांग है कि यह सीमावर्ती क्षेत्र संयुक्त महाराष्ट्र का हिस्सा होना चाहिए। इसलिए चुनाव में सीमा संबंधी मुद्दों को जीवित रखने का पूरा प्रयास किया जा रहा है।
39 लाख मतदाता तय करेंगे 185 उम्मीदवारों का भविष्य
बेलगाम जिले की 18 विधानसभा सीटों पर कुल 185 उम्मीदवार मैदान में हैं। जिले के 39 लाख मतदाता उनका राजनीतिक भविष्य तय करेंगे। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बेलगाम जिले के 18 विधानसभा क्षेत्रो में कुल 39.01 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 19,68,928 पुरुष मतदाता, 19,32,576 महिला मतदाता और 141 अन्य के रूप में पंजीकृत हैं। साल 2018 में भाजपा ने 10 और कांग्रेस ने आठ सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन कांग्रेस के तीन विधायक बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे।
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