Lok Sabha Election: क्या इस बार पारस को गच्चा दे गए नीतीश कुमार? इसलिए बिगड़ गया मामला

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Lok Sabha Election: Ram Vilas Paswan brother Pashupati Paras is isolated in the Lok Sabha election this time

Lok Sabha Election: Nitish Kumar, Pashupati Paras
– फोटो : Amar Ujala/ Rahul Bisht

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पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस इस बार लोकसभा चुनाव में अलग-थलग पड़ गए हैं। जिस तरह से सीट बंटवारे में चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के हिस्से पांच सीटें आईं हैं। सियासी जानकार बताते हैं कि इससे स्पष्ट है कि विरासत की सियासत में चिराग को पीछे कर आगे बढ़े पशुपति पारस इस बार नए रास्ते ही तलाशेंगे। बिहार के सियासी गलियारों में कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस बार पशुपति पारस को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी गच्चा दे दिया। क्योंकि माना यही जा रहा था कि बात बिगड़ने पर नीतीश कुमार एक बार फिर से पिछले विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी पशुपति पारस की पीठ पर धीरे से हाथ रखेंगे। लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं दिखा।

हार की सियासत इस बार लोकसभा चुनाव के लिहाज से बदली हई है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार सुमित कुमार कहते हैं कि दरअसल तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी पशुपति पारस को इस बात का अंदाजा था कि मामला इतना नहीं बिगड़ेगा। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के अंदरूनी सर्वे और चिराग पासवान की अपने चाचा की तुलना में बढ़ी सियासी हैसियत ने पूरी कहानी बिगाड़ दी। सुमित कहते हैं कि सियासी गलियारों में कहा तो यहां तक जा रहा था कि अगर सीटों के मामले में पशुपति पारस को लेकर ज्यादा मामला बिगड़ेगा, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हस्तक्षेप भी करेंगे। ताकि पशुपति पारस को फिर से मौका मिल सके। लेकिन इस बार सभी दांव-पेंच उल्टे हो गए। नतीजा हुआ कि चिराग पासवान की पार्टी को एनडीए गठबंधन में पांच सीटें मिल गईं।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद जिस तरीके से बिहार में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार का सियासी खेल बगड़ा था। उसी आधार पर पशुपति पारस को फिर से भरोसा नीतीश कुमार पर ही था कि सुशासन बाबू उनकी फिर से कुछ सुध लेंगे। राजनीतिक विश्लेषक अरुणेश सिन्हा कहते हैं कि पिछले चुनावों में बिहार की सियासत में स्थानीय पार्टियों को लेकर नीतीश कुमार जितनी चाभी भरते थे, उतना ही सियासी दांव पेंच आगे बढ़ता था। लेकिन इस बार नीतीश कुमार की भूमिका भी उस स्तर के दबाव वाली नहीं है। इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व और शीर्ष नेता खुद इस पूरे मामले में नजर बनाए हुए थे। ऐसे में न तो नीतीश कुमार की पशुपति पारस की पार्टी को लेकर सीट बंटवारे में चल सकती थी और न ही पशुपति पारस का कोई दबाव कम आ सकता था। यही वजह रही की चिराग पासवान इस लोकसभा चुनाव में सियासी बाजी मार ले गए।

सियासी जानकारी की मानें तो बिहार से लेकर केंद्र के राजनीतिक गलियारों में यह पहले से ही तय हो गया था कि पशुपति पारस का मजबूत सिक्का कमजोर होने लगा है। दरअसल पशुपति पारस की पार्टी से ताल्लुक रखने वाले पांच सांसदों में से कुछ की आस्था तो पहले से ही डिगने लगी थी। राजनीतिक विश्लेषक सुमित कुमार कहते हैं कि वैशाली की सांसद बीना देवी तो पहले से ही चिराग पासवान के साथ थीं। माहौल बदला तो खगड़िया के सांसद चौधरी मोहम्मद अली कैसर भी चिराग पासवान के साथ होने का दम भरने लगे। चूंकि इस बार पासवान परिवार के हिस्से में आई नेवादा सीट भाजपा के खाते में चली गई है, इसलिए बची हुईं पांच सीटें चिराग पासवान के हिस्से आई हैं।

वहीं पशुपति पारस का केंद्रीय मंत्रिमंडल से दिया इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है। सियासी जानकारों की मानें तो पारस बिहार में INDI गठबंधन के साथ भी जा सकते हैं। हालांकि आधिकारिक रूप से अभी इस पर कोई घोषणा नहीं हुई है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पशुपति पारस 48 घंटे के भीतर अपना कोई बड़ा सियासी दांव खेल सकते हैं। संभव है कि वह गठबंधन में जाकर लोकसभा चुनाव में उतर सकते हैं।




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