Mangla Gauri Vrat: सावन का छठा व अधिकमास के चौथे मंगला गौरी व्रत आज, जानें व्रत नियम, पूजा विधि, कथा और महत्व

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Mangla Gauri Vrat: सावन माह में मंगलवार के दिन पड़ने वाला मंगला गौरी व्रत माता पार्वती को समर्पित है. सावन के हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा जाता है और मां पार्वती के मंगल स्वरूप की पूजा की जाती है. सावन मास का छठा और अधिकमास का चौथा मंगला गौरी व्रत 8 अगस्त यानि आज है. इस साल सावन में अधिकमास होने के कारण मंगला गौरी व्रत भी नौ हैं. अब तक पांच मंगला गौरी व्रत बीत चुके हैं. आज यानी 8 अगस्त को सावन मास का छठा मंगला गौरी व्रत है. इसके बाद सातवां मंगला गौरी व्रत 15 अगस्त को, आठवां मंगला गौरी व्रत 22 अगस्त को और नौवां व अंतिम मंगला गौरी व्रत 29 अगस्त को पड़ेगा.

मंगला गौरी व्रत करने पर मंगल दोष होता हैं शांत

ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को विवाह का कारक माना गया है. ऐसे में मंगला गौरी व्रत के दिन कुछ विशेष उपाय करने से व्यक्ति की कुंडली में मौजूद मंगल दोष से मुक्ति मिल सकती है. मंगला गौरी व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है. इस व्रत को करने से माता पार्वती सदा सौभाग्‍यवती रहने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं. तो वहीं, अविवाहित युवतियां इस व्रत को अच्छे वर की प्राप्ति के लिए और विवाह में आने वाली बाधा को दूर करने के लिए रखती हैं. इस व्रत को करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है.

मंगला गौरी व्रत पूजा विधि

  • – श्रावण मास के मंगलवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जल्दी उठें.

  • – नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ-सुथरे धुले हुए अथवा नए वस्त्र धारण कर व्रत करें.

  • – मां मंगला गौरी (पार्वती जी) का एक चित्र अथवा प्रतिमा लें.

  • – फिर निम्न मंत्र के साथ व्रत करने का संकल्प लें.

‘मम पुत्रापौत्रासौभाग्यवृद्धये श्रीमंगलागौरीप्रीत्यर्थं पंचवर्षपर्यन्तं मंगलागौरीव्रतमहं करिष्ये।’

अर्थात्- मैं अपने पति, पुत्र-पौत्रों, उनकी सौभाग्य वृद्धि एवं मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए इस व्रत को करने का संकल्प लेती हूं

  • – तत्पश्चात मंगला गौरी के चित्र या प्रतिमा को एक चौकी पर सफेद फिर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें.

  • – प्रतिमा के सामने एक घी का दीपक (आटे से बनाया हुआ) जलाएं. दीपक ऐसा हो जिसमें 16 बत्तियां लगाई जा सकें.

फिर ‘कुंकुमागुरुलिप्तांगा सर्वाभरणभूषिताम्। नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देहं मंगलाह्वयाम्…।।’

यह मंत्र बोलते हुए माता मंगला गौरी का षोडशोपचार पूजन करें.

  • – माता के पूजन के पश्चात उनको (सभी वस्तुएं 16 की संख्या में होनी चाहिए) 16 मालाएं, लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री, 16 चूड़ियां तथा मिठाई अर्पण करें। इसके अलावा 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज-धान्य (जिसमें गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि चढ़ाएं.

  • – पूजन के बाद मंगला गौरी की कथा जरूर सुनें.

  • – इस व्रत में एक ही समय अन्न ग्रहण करके पूरे दिन मां पार्वती की आराधना की जाती है.

  • – शिवप्रिया पार्वती को प्रसन्न करने वाला यह सरल व्रत करने वालों को अखंड सुहाग तथा पुत्र प्राप्ति का सुख मिलता है.

मंगला गौरी व्रत की पूजा सामग्री

इस पूजा में फल, दीया, देसी घी, सोलह श्रृंगार का सामान, मिठाई, कपास, पान, सुपारी, इलायची, लौंग, फूल, सुहाग की सामग्री और पंचमेवा शुद्ध मन और समर्पित भक्ति के साथ मां गौरी की पूजा-अर्चना करना चाहिए.

मंगला गौरी व्रत के शुभ मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त–04:08 am से 04:51 am .

दीर्घायु योग–07:47 am से 08:53 am.

अभिजित मुहूर्त– 11:45 am से 12:38 pm .

भगवती गौरी का ध्यान मंत्र

– नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।

नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता:प्रणता:स्म ताम्।।

– श्रीगणेशाम्बिकाभ्यां नम:, ध्यानं समर्पयामि।

– उमामहेश्वराभ्यां नम:।

– ह्रीं मंगले गौरि विवाहबाधां नाशय स्वाहा।

– गण गौरी शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकर प्रिया।

मां कुरु कल्याणी कांत कांता सुदुर्लभाम्।।

मंगला गौरी व्रत मंत्र

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

इसके अलावा आप ॐ उमामहेश्वराय नम: मंत्र का जप भी कर सकते हैं।

पूजा में इन बातों का रखें विशेष ख्याल

  • जब आप लगातार पांच साल तक मंगला गौरी व्रत रख लें तो पूजन करने के बाद पांचवें वर्ष में सावन माह के अंतिम मंगलवार को इस व्रत का उद्यापन जरूर कर दें. उद्यापन के बिना ये व्रत पूरा नहीं माना जाएगा.

  • इस बात का भी ख्याल रखें की मां मंगला गौरी व्रत के दौरान माता को 16 महिलाएं, आटे के लड्डू, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, और सुहाग सामग्री अर्पित करते रहें.

मंगला गौरी व्रत का महत्व

  • मंगला गौरी व्रत के दौरान सेव , केला , अंगुर , सांवके , साबुदाने की खीर, दुध का मेवा , इत्यादि खाने चाहिए. इस दिन जो भी भोजन किया जाता है उस भोजन में किसी भी प्रकार के नमक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए यदि नमक का इस्तेमाल करते हैं तो व्रत ईश्वर तक नहीं पहुंच पाता है.

  • अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए महिलाएं मंगला गौरी का व्रत रखती हैं. मंगला गौरी व्रत सावन के महीने में प्रथम मंगलवार से प्रारंभ होकर माह के सभी मंगलवारों को किया जाने वाला व्रत है. यह एक ऐसा व्रत है जो पवित्र श्रावण मास में भगवान शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती की कृपा पाने का सबसे सुलभ मौका प्रदान करता है.

  • सावन मास में माता पार्वती को समर्पित एक व्रत है, जिसका नाम मंगला गौरी व्रत है. कई भक्त या तो श्रावण मास के दौरान व्रत रखकर सोलह सप्ताह तक व्रत रखने का संकल्प लेते हैं या फिर सावन महीने के हर मंगलवार को इस व्रत को करते हैं.

  • मंगला गौरी व्रत सावन के प्रत्येक मंगलवार को मनाया जाता है। कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कई व्रत रखे थे. उन्हीं में से एक व्रत है मंगला गौरी व्रत. विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करके इस व्रत को रखती हैं.

  • मंगला गौरी व्रत माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है. अगर कोई संतान प्राप्ति की इच्छा से भी इस व्रत को रखता है तो उसकी मनोकामना जल्द पूरी हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही अगर किसी के दांपत्य जीवन में समस्या चल रही है तो उनके लिए भी यह व्रत बहुत मंगलकारी रहता है. वहीं, अगर कोई अविवाहित कन्या इस व्रत को रखती है तो उन्हें उत्तम वर प्राप्ति की मनोकामना जल्द पूरी हो जाती है.

मंगला गौरी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था. उसकी पत्नी सुन्दर थी और उसके पास काफी संपत्ति थी. लेकिन उनके कोई संतान नहीं होने के कारण वे काफी दुखी रहा करते थे. ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था. उसे यह श्राप मिला था कि 16 वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी. संयोग से उसकी शादी 16 वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई, जो माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी. परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती थी. अत: अपनी माता के इसी व्रत के प्रताप से धरमपाल की बहू को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई.

इस वजह से धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की. तभी से ही मंगला गौरी व्रत की शुरुआत मानी गई है. इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं और अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं. जो महिला उपवास का पालन नहीं कर सकतीं, वे भी कम से कम पूजा तो करती ही हैं. इस कथा को सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को 16 लड्डू देती है. इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती है. इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती 16 बाती वाले दीये से देवी की आरती करती है.

व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विसर्जित कर दी जाती है. अंत में मां गौरी के सामने हाथ जोड़कर अपने समस्त अपराधों के लिए एवं पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगना चाहिए. इस व्रत और पूजा को परिवार की खुशी के लिए लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है. अत: शास्त्रों के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमों के अनुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र-पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं, ऐसी इस व्रत की महिमा है.

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