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सम्राट चौधरी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उपहार देते हुए।
– फोटो : अमर उजाला डिजिटल
विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को बेतिया पहुंचे और उन्होंने यूपी और बिहार के लिए लगभग 12 हजार 800 करोड़ की सड़क, गैस और IT से जुड़ी योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री को चंपारण का खुशबूदार मर्चा का चूड़ा उपहारस्वरूप दिया गया। मरचा चूड़ा पश्चिमी चंपारण की पहचान है।
इस वजह से यह अन्य चूड़ा से है भिन्न
बताया जाता है कि चंपारण के खुशबूदार मर्चा का स्वाद 80 देशों के लोग कर रहे हैं। इस चूड़ा के मर्चा धान की आकृति अन्य धान से काफी अलग होती है। यह काली मिर्च की तरह होती है। इसलिए इसको मर्चा धान के नाम से जाना जाता है। मर्चा धान की खेती पश्चिमी चंपारण जिले के नरकटियागंज, गौनाहा, सिकटा, मैनाटांड़ और रामनगर, बगहा, चनपटिया आदि ब्लॉक के कुछ ही गांव में बड़े पैमाने पर की जाती है।
पांच महीने में हो जाती है फसल तैयार
पश्चिमी चंपारण में करीब एक हजार एकड़ में इस धान की खेती होती है। वहीं करीब 500 से अधिक किसान इसकी खेती करते हैं। यह 145 से 150 दिन की फसल होती है और इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल के आसपास होता है।
पिछले साल मिला है इसे जीआई टैग
दिल्ली के प्रगति मैदान में 3 से 5 नवंबर 2023 तक चलने वाले वर्ल्ड फूड इंडिया सेमिनार में हिस्सा लेने के लिए चनपटिया के मशहूर मर्चा चूड़ा निर्माता रामजी प्रसाद का चयन हुआ है। मर्चा धान के चूड़ा को जीआई टैग भी मिला था। पूरे बिहार में छठे उत्पादन को जीआई टैग मिला है। इससे पहले भागलपुर के कतरनी चावल, नवादा के मगही पान, भागलपुर का जर्दालु आम, मुजफ्फरपुर की शाही लीची और मिथिला के मखाना को जीआई टैग मिला हुआ है। बिहार के पश्चिम चंपारण का मर्चा चूड़ा छठा उत्पादन है जिसे जीआई टैग मिला है।
किसानों को मिलेगा फायदा
मर्चा चूड़ा की विदेशों में डिमांड बढ़ने से किसानों को फायदा हो रहा है। और उन्हें उचित मूल्य मिल रहा है। उनकी आमदनी दुगनी हो गई है। मर्चा चूड़ा में मिट्टी की खुशबू होती है,और यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है। इसका स्वाद अलग होता है। चंपारण की मिट्टी छोड़कर कहीं भी मर्चा चूड़ा का स्वाद ऐसा नहीं होता है। देश और बिहार के कई जगहों पर इसके धान को उगाया गया है, लेकिन जो खुशबू चंपारण की मिट्टी से है वह कहीं और नहीं होती। यही कारण है कि चंपारण के इस मिट्टी के इस मर्चा चूड़ा को भौगोलिक दृष्टि से जीआई टैग मिला है।
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