[ad_1]
बरसाने की मशहूर लट्ठमार होली या फिर मिथिला की कीचड़ की होली के चर्चे तो आपने खूब सुने होंगे लेकिन धधकती चिताओं के बीच महाश्मशान पर होली खेलने का अड़भंगी अंदाज कहीं नहीं देखा होगा। ऐसा सिर्फ काशी में ही होता है। यहां के लोग महादेव से होली खेलते हैं। भस्म भी ऐसा-वैसा नहीं, महाश्मशान में जलने वाले इंसानों के राख से तैयार भस्म होता है। महादेव की नगरी काशी में ऐसी अनोखी होली का रंग रंगभरी एकादशी के अगले दिन यानी चार मार्च को नदर आएगा।
एक तरफ चिताएं धधकती रहेंगी तो दूसरी ओर बुझी चिताओं की भस्म से जमकर साधु-संत और भक्त होली खेलने में रमे रहेंगे। डीजे, ढोल, मजीरे और डमरुओं की थाप के बीच लोग जमकर झूमेंगे और हर-हर महादेव के उद्घोष से महाश्मशान गूंजता रहेगा।
पढ़ें: वाराणसी में सात को और पूरे देश में 8 मार्च को मनेगी होली, जानिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और महत्व
मोक्ष नगरी काशी…जहां मृत्यु भी उत्सव है…जहां स्वयं देवाधिदेव महादेव महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर अपने गणों और भक्तों के साथ धधकती चिताओं के बीच चिता भस्म की होली खेलते हैं। चार मार्च को चिता भस्म की होली का आयोजन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा।
श्री काशी महाश्मशान नाथ सेवा समिति के अध्यक्ष चैनु प्रसाद गुप्ता ने बताया प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली खेली जाएगी। मान्यता है यहां बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महाश्मशान पर आकर चिता भस्म से होली खेलते हैं।
चैनु गुप्ता ने बताया कि यहां शिव भक्त अड़भंगी मिजाज से फगुआ के गीत गाते हुए देश और दुनिया को यह संदेश देते हैं कि काशी में जन्म और मृत्यु दोनों ही उत्सव है। चिता भस्म की होली के साक्षी बनने के लिए देश और दुनिया भर से लोग काशी आते हैं।
महाश्मशान सेवा समिति के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने बताया कि काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं, जिसे उत्सव के रूप में काशीवासी मनाते हैं और तभी से रंगों का त्यौहार होली का प्रारंभ माना जाता है।
[ad_2]
Source link