[ad_1]

बेंगलुरू में होने वाली है विपक्षी एकता की बैठक।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार को 2024 के लोकसभा चुनाव में उखाड़ फेंकने का एलान करने के लिए 23 जून को पटना में विपक्षी एकता की बैठक हुई थी। इस बैठक में देशभर से 15 दल जुटे थे, हालांकि आम आदमी पार्टी (AAP) ने बगैर घोषणा किए पैर खींच लिए थे। मीडिया के सामने 14 दल ही आए थे। अब बेंगलुरू में दो दर्जन दलों का इससे भी बड़ा जुटान हो रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इससे कितने खुश हो रहे होंगे, यह उनका मन ही जानता है। क्योंकि, खबर अब बेंगलुरू में विपक्षी एकता के लिए हो रही बैठक का संयोजन करने वाली कांग्रेस पार्टी (INC) से है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की संयोजक और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इस बैठक में शामिल होंगी।
नीतीश-लालू के अलावा जदयू-राजद से यह भी जाएंगे
जनता दल यूनाईटेड (JDU) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बेंगलुरू की बैठक के लिए बुलावा आ चुका है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह भी नीतीश के साथ जाएंगे। जदयू से और एक मंत्री का नाम संभव है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का नाम पक्का हो चुका है। पार्टी की तरफ से एक और नेता जाएंगे और ज्यादा संभावना मनोज झा के नाम की है। 23 जून को पटना में हुई बैठक का संयोजन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था, हालांकि कई नेताओं को पटना बुला लाने में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की अहम भूमिका रही थी।
सोनिया के कारण क्या-क्या होगा, समझ रहा जदयू
पटना में हुई बैठक में फैसला हुआ था कि अगली बैठक का संयोजन कांग्रेस करेगी। पटना में हुई बैठक के दौरान कई नेताओं ने इस बैठक के आयोजन के लिए नीतीश कुमार को बधाई के साथ धन्यवाद दिया था। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘बैठक के संयोजक’ शब्द का इस्तेमाल भी किया, हालांकि उम्मीद से उलट इस बैठक के बाद मीडिया के सामने संयोजक पद पर नाम को लेकर घोषणा नहीं की गई। नीतीश इस नाम के हकदार थे। लेकिन, घोषणा नहीं हुई। तभी यह आशंका थी कि अगली बैठक में कुछ तो होगा। क्या होगा, इसकी भनक अब बिहार पहुंच गई है। भाजपा के खिलाफ चल रहे मौजूदा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी भी कांग्रेस के संयोजन से बेंगलुरू में प्रस्तावित बैठक में शामिल हो रही हैं। सोनिया पहले से भाजपा विरोधी दलों के गठबंधन की चेयरपर्सन हैं। पटना आने में राहुल गांधी हिचकिचा रहे थे, लेकिन बेंगलुरू में सोनिया रहेंगी तो क्या होगा, जदयू को अंदाजा है।
किसके पक्ष में क्या अच्छी बात, यह समझना होगा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह है कि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुटता दिखाने का प्रयास ही उन्होंने शुरू किया। 12 जून को बैठक बुलाने पर कांग्रेस ने उदासीनता दिखाई तो उन्होंने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की मदद से 23 जून को मजबूती के साथ विपक्षी एकता की बैठक कर ली। इस बैठक में संयोजक की घोषणा नहीं हुई, लेकिन बीच में लालू-नीतीश ही थे। भ्रष्टाचार के नाम पर लालू के लिए अभिभावक या संरक्षक की भूमिका तो हो सकती है, लेकिन सक्रिय संयोजक के रूप में नहीं। शरद पवार की भूमिका भी ऐसी हो सकती है। अब बेंगलुरू में आ रहीं सोनिया की बात करें तो उनकी दावेदारी मजबूत होने का कारण तीन हैं- पहला यह कि सोनिया मौजूदा ऐसे ही गठबंधन की अध्यक्ष हैं, दूसरा यह कि राष्ट्रीय दल के प्रतिनिधि के रूप में उनके पास और कोई पद नहीं है और तीसरा यह कि कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकताके गठबंधन का अस्तित्व नहीं हो सकता है।
[ad_2]
Source link