Pitru Paksha: गयाजी प्रेतशिला पहाड़ पर आज भी भूत-प्रेत का वास, जानें ‘उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो’ की कहानी

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Pitru Paksha 2022: प्रेतशिला पहाड़ पर आज भी भूत व प्रेत का वास रहता है. इस पहाड़ पर जाने के लिए 676 सीढ़ियां बनी हुई हैं. इस पर्वत के शिखर पर प्रेतशिला वेदी है. कहा जाता है कि अकाल मृत्यु से मरने वाले पूर्वजों का प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध व पिंडदान करने का विशेष महत्व है. इस पर्वत पर पिंडदान करने से पूर्वज सीधे पिंड ग्रहण करते हैं. इससे पितरों को कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है.

यहां सत्तू के पिंडदान करने व उसे उड़ाने की है मान्यता

मान्यता है कि जिनकी अकाल मृत्यु होती है उनके यहां सूतक लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना गया है. उसका सेवन पिंडदान करने के बाद ही किया जाता है. इसीलिए यहां प्रेतशिला वेदी पर आकर सत्तू उड़ाते व प्रेत आत्माओं से आशीर्वाद व मंगलकामनाएं मांगते हैं. यहां के धामी पंडा सत्येंद्र पांडेय ने बताया कि इस पर्वत पर धर्मशिला है, जिस पर पिंडदानी ब्रह्मा जी के पद चिह्न पर पिंडदान करके धर्मशिला पर सत्तू उड़ा कर कहते हैं.

‘उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो’

‘उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो’. सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जाने की मान्यता है. इस धर्मशिला में एक दरार है, जिसमें सत्तू का कण जरूर जाना चाहिए. मान्यता है कि यह दरार यमलोक तक जाती है. इस चट्टान के चारों तरफ परिक्रमा कर सत्तू चढ़ाने से अकाल मृत्यु में मरे पूर्वजों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जाती है. प्रेतशिला में भगवान विष्णु की भी प्रतिमा है. पिंडदानी अकाल मृत्यु वाले लोग की तस्वीर विष्णु चरण पर रख कर उनके मोक्ष की कामना करते हैं.

शाम छह बजे के बाद पसर जाता है सन्नाटा

पिंडदान के कर्मकांड से जुड़े लोगों का कहना है कि पहाड़ पर आज भी भूतों का डेरा रहता है. मध्य रात्रि में यहां प्रेत के भगवान आते हैं. यही कारण है कि यहां शाम छह बजे के बाद कोई नहीं रुकता है. कोई भी शाम छह बजे के बाद नहीं रुकता है. यहां तक कि पंडा जी भी इस पर्वत से उतर कर वापस घर चले जाते हैं.

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