RCP Singh: भाजपा के बिहार प्लान का खास हिस्सा होंगे आरसीपी सिंह, नीतीश को मिलेगी कड़ी टक्कर

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पूर्व जदयू नेता आरसीपी सिंह ने 11 मई को भाजपा का दामन थाम लिया। वे भाजपा के ‘मिशन बिहार’ की रणनीति का अहम हिस्सा माने जा रहे हैं, जिसमें वह राज्य में अपने बूते खड़ी होना चाहती है। आरसीपी सिंह के भाजपा के साथ आने से वह नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के महागठबंधन को मजबूत चुनौती दे सकेगी। साथ ही यह नीतीश कुमार के 2024 के मेगा प्लान को उन्हीं के गृह राज्य में पंचर करने का काम करेंगे।

भाजपा की सदस्यता ग्रहण करते हुए रामचंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार ने कहा है कि देश में कोई काम नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि ये आरोप सरासर गलत हैं क्योंकि यदि काम न हो रहा होता तो देश दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था न बनता। उन्होंने आरोप लगाया कि नीतीश कुमार को केवल अपनी कुर्सी से प्यार है। वे बिहार में विकास का कोई काम नहीं कर सके हैं, लेकिन अब विपक्षी एकता के नाम पर अपनी राजनीति आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

आरसीपी सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार हमेशा PM रहे हैं और आगे भी बने रहेंगे। इस PM का अर्थ उन्होंने ‘पलटीमार’ बताया।

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बिहार प्लान का हिस्सा

राजनीति के जानकार मानते हैं कि भाजपा बिहार में पिछड़ों-दलितों और ओबीसी जातियों की राजनीति करना चाहती है। इसके लिए वह अपनी पार्टी में इन जातियों के नेताओं को आगे बढ़ा रही है, तो वहीं दूसरे दलों से जो नेता उससे वैचारिक सहमति रखते हैं, उन्हें भी अपने साथ जोड़ना चाहती है। सम्राट चौधरी को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपना इसी रणनीति का हिस्सा है। इसी क्रम में आरसीपी सिंह पिछड़ी कुर्मी-कोइरी जातियों के बीच उसके चेहरे के तौर पर पेश किये जा सकते हैं।

माना यह भी जा रहा है कि भाजपा उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और चिराग पासवान को दोबारा साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही है। इससे वह आगामी लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के सामने मजबूत चुनौती पेश कर सकेगी। साथ ही अगले बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू-आरजेडी महागठबंधन के सामने अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर सकेगी।

बिहार की राजनीति पर असर

जाति आधारित राजनीति की प्रमुखता वाले राज्य बिहार में आरसीपी सिंह कुर्मी जाति (लगभग तीन प्रतिशत आबादी) और कोइरी (2.5 प्रतिशत आबादी) समुदाय के बीच भाजपा के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किए जा सकते हैं। नीतीश कुमार इसी वोट बैंक के बल पर राजनीति की लंबी पारी खेलते आए हैं। चूंकि आरसीपी सिंह की साफ-स्वच्छ छवि स्थानीय जनता के बीच आकर्षण का एक केंद्र रही है, और लंबे अरसे तक वे नीतीश कुमार के विश्वसनीय सहयोगी के तौर पर भी देखे जाते थे, इन जातियों के बीच उनकी अच्छी पकड़ है। वे भाजपा के लिए इन वर्गों के मतदाताओं में एक सकारात्मक असर पैदा कर सकते हैं।

हालांकि, आरसीपी सिंह की बिहार की राजनीति में असर को लेकर अभी भी कयासबाजी जारी है। चूंकि, भाजपा आरसीपी सिंह से जिस वोट बैंक को साथ लाने की उम्मीद कर रही है, उसके बड़े नेता के तौर पर नीतीश कुमार पहले से मौजूद हैं, ऐसे में वे कुर्मी-कोइरी समुदाय को भाजपा की ओर कितना आकर्षित कर पाएंगे, यह बड़ा प्रश्न है।

क्यों छोड़ा नीतीश का साथ

आरसीपी सिंह ने 06 अगस्त 2022 को जनता दल यूनाइटेड छोड़ने का एलान किया था। उन्होंने यह कदम उन आरोपों के बाद उठाया, जिसमें उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे और पार्टी नेतृत्व ने उनसे इस मामले पर सफाई मांगी गई थी। बिहार जदयू नेताओं के द्वारा उन पर भ्रष्टाचार के माध्यम से अकूत संपत्ति जमा करने के आरोप लगाए गए थे।

मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री के तौर पर काम कर चुके आरसीपी सिंह को लेकर उनकी पार्टी के अंदर हलचल चलती रही थी। उन्हें जनता दल यूनाइटेड के अंदर भाजपा के ‘एजेंट’ के तौर पर देखा जाता था। संभवतः इन्हीं आरोपों के कारण नीतीश कुमार ने उन्हें दोबारा  राज्यसभा नहीं भेजने का निर्णय किया और संसद के किसी सदन का सदस्य न होने के कारण 06 जुलाई 2022 को उन्हें मंत्री पद गंवाना पड़ा।

गिर गई थी जेडीयू-भाजपा सरकार

दरअसल, जदयू के अंदर यह चर्चा थी कि नीतीश कुमार की सहमति के बिना ही भाजपा ने उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री बना दिया था। इसे भविष्य में नीतीश कुमार की राजनीति के विकल्प के रूप में आरसीपी सिंह को तैयार करने और जदयू को तोड़ने के प्लान के तौर पर देखा गया था। माना जाता है कि यहीं से भाजपा और जदयू के बीच दूरियां इतनी बढ़ गईं कि उन्हें संभाला नहीं जा सका और इसका अंत बिहार में दोनों दलों के संयुक्त सरकार के पतन के रूप में सामने आया था।

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