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तुमने रूप अनेक धारे। को कहि सके चरित्र तुम्हारे॥
धाम अनेक कहां तक कहिए। सुमिरन तब करके सुख लहिए॥
विंध्याचल में विंध्यवासिनी। कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी॥
कलकत्ते में तू ही काली। दुष्ट नाशिनी महाकराली॥
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तुमने रूप अनेक धारे। को कहि सके चरित्र तुम्हारे॥
धाम अनेक कहां तक कहिए। सुमिरन तब करके सुख लहिए॥
विंध्याचल में विंध्यवासिनी। कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी॥
कलकत्ते में तू ही काली। दुष्ट नाशिनी महाकराली॥
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