Shardiya Navratri: इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर में बिना रक्त बहाए दी जाती है बलि, देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु

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Mundeshwari temple has a unique tradition, worshiped with mantra, devotees; Durga Puja, Bihar News, Mahashtami

मां मंडेश्वरी मंदिर।
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


मां मुंडेश्वरी और महामंडलेश्वर महादेव मंदिर विश्व के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। अष्टकोणीय आकार का यह मंदिर कैमूर जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर भगवनपुर के पवरा पहाड़ी पर स्थित है। करीब 650 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में शारदीय नवरात्र के दौरान पूजा का विशेष महत्व है। नौ दिन कलश स्थापना कर वैदिक विधि-विधान के साथ पूजा होती है। महाअष्टमी की रात में निशा पूजा का प्रावधान है। इसे देखने के लिए श्रद्धालुओं का भीड़ उमड़ पड़तर है।

मां मुंडेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह के अंदर पंचमुखी शिवलिंग है। दावा किया जाता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर व शाम को अलग-अलग दिखाई देता है। कब शिवलिंग का रंग बदल जाता है, पता भी नहीं चलता। यहां देश-विदेश से जो भी लोग माता मुंडेश्वरी की दर्शन करने के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहां भक्त माता से जो भी मनोकामना मांगते हैं वह पूर्ण होता है।

चमत्कार देखने वाले अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पाते

पूरे विश्व में इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां अनोखे तरह की बलि होती है। यहां रक्तहीन पशु बलि दी है। मंदिर के मुख्य पुजारी मुन्ना द्रिवेदी ने कहा कि यहां एक अनूठा प्रक्रिया है। बकरा को मां के प्रतिमा के समक्ष लाया जाता है। मंदिर के पुजारी के जरिए मंत्रोच्चार के बाद बकरा पर अक्षत और फूल आदि चढ़ाया जाता है फिर वह बकरा मूर्छित हो जाता है और पुनः मंत्रोच्चारण के बाद अक्षत-फूल बकरा पर मारने के बाद बकरा खड़ा हो जाता है। यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता है। इस चमत्कार को देखने वाले अपनी आंखों पर यकीन नहीं कर पाते हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परंपरा है। जो सदियों से चली आ रही है। नवरात्र के दौरान इस स्थान पर अद्भुत मेला लगता है। काफी दूर से पूजा-अर्चना करने श्रद्धालु यहां आते हैं।

 

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