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शिमला में समरहिल में हुई तबाही के बाद एडवांस स्टडी के पास बहा जमीन का हिस्सा।
– फोटो : संवाद
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राजधानी शिमला के समरहिल में शिव बावड़ी के पास हुई दर्दनाक घटना में अब तक 13 लोग जान गवां चुके हैं। आठ से दस लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। इस घटना में जिस तरह से भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (एडवांस्ड स्टडी) के लॉन से लेकर शिव बावड़ी के नीचे नाले तक सैसैकड़ों पेड़ भूस्खलन की चपेट में आए हैं, उसे बादल फटने की घटना से जोड़कर भी देखा जा रहा है। मौके पर देखें तो जिस तरह से एडवांस स्टडीज से भूस्खलन शुरू हुआ और नीचे तक दो सड़कों, ऐतिहासिक धरोहर शिमला-कालका रेल लाइन के करीब 15 मीटर हिस्से को मलबा बहाकर लेकर गया है, उससे यह घटना आम नहीं है।
कुछ लोग इसे बादल फटने की घटना नहीं मान रहे तथा कई सवाल उठा रहे हैं जिसकी गहनता से जांच करवाने की मांग कर रहे हैं। कुछ लोग इसे मानवीय चूक भी बता रहे हैं। एचपीयू के भूगोल विभाग के पूर्व अध्यक्ष (सेवानिवृत्त) बीएस माढ़ के मुताबिक बालूगंज, समरहिल और लोअर समरहिल को जाने वाली सड़क में लगातार बरसात तथा सर्दियों में भूस्खलन होने से सड़क बंद होने की घटनाएं होती रहती हैं।
इसके लिए कहीं न कहीं बारिश के पानी की उचित निकासी का न होना भी एक वजह रही है। भूस्खलन का बार-बार होना बड़ी त्रासदी का संकेत था जिसे लगातार नजर अंदाज किया जाता रहा। यदि बारिश के पानी की निकासी की समय रहते उचित व्यवस्था होती तो यह इतनी बड़ी घटना न होती और लोगों की जान न जाती। बालूगंज से अपर समरहिल और बालूगंज से लोअर समरहिल की ओर जाने वाली सड़क से पानी की निकासी जंगल की ओर होती थी।
1989 से लेकर उन्होंने इतनी बड़ी भूस्खलन की घटना क्षेत्र में नहीं देखी। प्रभावित क्षेत्र की भूमि सीपीडब्लूडी, नगर निगम, लोक निर्माण विभाग, रेलवे और वन विभाग की भूमि थी। विभागों ने पानी की उचित निकासी को समय रहते मिलकर कोई योजना नहीं बनाई, जिस कारण यह बड़ा हादसा बन गया।
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