Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, हिमाचल के दो जजों को पद से हटाने से इनकार

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supreme court Verdict on recruitment and appointment of two civil judges in Himachal Pradesh

सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : सोशल मीडिया

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियुक्तियां सिर्फ उन्हीं पदों पर की जा सकती हैं जिन पर स्पष्ट और प्रत्याशित रिक्तियों का विज्ञापन दिया गया है। शीर्ष अदालत ने भविष्य की रिक्तियों के नाम पर सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में दो उम्मीदवारों की 2013 की नियुक्तियों में त्रुटि पाने वाले हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।

हालांकि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उन्होंने दस साल से अधिक की सेवा प्रदान की है और अनियमितताओं में उनकी कोई गलती नहीं थी अदालत ने दोनों न्यायिक अधिकारियों को पद से हटाने से इनकार कर दिया। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश के उस हिस्से को निरस्त कर दिया जिसमें अपीलकर्ताओं के चयन और नियुक्ति को रद्द कर दिया गया था।

चयन या नियुक्ति में प्रक्रिया का हुआ उल्लंघन

जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि ऐसी रिक्तियां जो विज्ञापन के समय मौजूद नहीं थीं, वे भविष्य यानी अगली चयन प्रक्रिया के लिए थीं। हिमाचल हाईकोर्ट ने कानून की स्थिति का सही ढंग से पालन किया है। हालांकि हाईकोर्ट ने मामले के संदर्भ, तथ्यों और परिस्थितियों को नजरअंदाज कर दिया।

इसलिए पीठ ने कहा कि अपीलकर्ताओं विवेक कायस्थ और आकांशा डोगरा को उनके पदों से हटाना सार्वजनिक हित में नहीं होगा, क्योंकि उन्होंने सेवा में 10 साल पूरे कर लिए हैं और उन्हें पदोन्नत भी किया है। पीठ ने कहा, हमारा मानना है कि अपीलकर्ताओं के चयन या नियुक्ति में प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया है।

यहां तक कि जिन रिक्तियों पर अपीलकर्ताओं को नियुक्त किया गया था, उनका कभी भी विज्ञापन नहीं किया गया था। इन रिक्तियों को ‘प्रत्याशित रिक्तियां’ भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि ये रिक्तियां 18 अप्रैल 2013 को सृजित की गई थीं यानी चयन प्रक्रिया शुरू होने और एक फरवरी 2013 को विज्ञापन जारी होने के बाद की थी।

राज्य सेवा आयोग पर सारा दोष मढ़ने के प्रयास को किया खारिज

पीठ ने चयन के बाद की गई प्रक्रिया को लेकर राज्य सेवा आयोग पर सारा दोष मढ़ने के हाईकोर्ट के प्रयास को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, निस्संदेह चयन अथॉरिटी के रूप में आयोग को अंततः खामियाजा भुगतना होगा, फिर भी दोष राज्य सरकार और हाईकोर्ट को समान रूप से साझा करना चाहिए।

हालांकि पीठ ने कहा कि यह देखते हुए कि वर्तमान मामले में अपीलकर्ता लगभग 10 वर्षों से न्यायिक अधिकारी के रूप में काम कर रहे हैं, उन्हें हटाना उचित नहीं होगा। पीठ ने बताया कि वे अब 10 वर्षों की न्यायिक सेवा के अनुभव के साथ सिविल जज (सीनियर डिवीजन) हैं। पीठ ने कहा, यह किसी का मामला नहीं है कि अपीलकर्ताओं को पक्षपात, भाई-भतीजावाद या किसी ऐसे कार्य के कारण नियुक्त किया गया है जिसे दोषपूर्ण कहा जाए। 

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