UP Politics: कांग्रेस के लिए कैसे खुलेगा सत्ता का द्वार, जब इतने बड़े कार्यक्रम को ही भूले कांग्रेसी!

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Rahul gandhi, Priyanka Gandhi

Rahul gandhi, Priyanka Gandhi
– फोटो : Agency (File Photo)

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उत्तर प्रदेश को केंद्र की ‘सत्ता का द्वार’ माना जाता है। जिस राजनीतिक दल की यूपी पर पकड़ मजबूत हो जाती है, उसकी केंद्र की सत्ता की राह आसान हो जाती है। इसे ध्यान में रखते हुए भाजपा यूपी की सभी 80 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए ‘मिशन 80’ फॉर्मूले पर काम कर रही है। नीतीश-तेजस्वी का महागठबंधन सपा-आरएलडी के सहारे इस राज्य में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। बसपा ने भी अपनी वापसी के लिए संगठन में भारी फेरबदल करते हुए जमीनी संपर्क बढ़ा दिया है। लेकिन यूपी की सियासी जमीन से वह कांग्रेस लगभग गायब दिख रही है, जिसके नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के सहारे पार्टी को 2024 के आम चुनाव के लिए मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

कांग्रेस नेताओं का मानना है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने पूरे देश में पार्टी को लेकर एक हलचल पैदा की है। इस यात्रा से राहुल गांधी की छवि में सुधार हुआ है, तो कांग्रेस पार्टी को भी लाभ हुआ है। कई किंतु-परंतु के बीच वह विपक्षी खेमे के नेतृत्व कर सकने में सक्षम दल की तरह उभरी है। पार्टी नेताओं ने तय किया था कि यात्रा से मिले इस लाभ को सुस्त नहीं पड़ने दिया जाएगा, बल्कि विभिन्न कार्यक्रमों और मुद्दों के जरिए इसे और मजबूत किया जाएगा।

इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ही पार्टी ने 26 जनवरी 2023 से ‘हाथ से हाथ जोड़ो’ कार्यक्रम की योजना बनाई थी। योजना के मुताबिक 26 जनवरी से 26 मार्च के बीच देश के सभी जिला, ब्लॉक और ग्राम स्तर तक जनता के मुद्दों को उठाया जाना है। इस दौरान लोगों को केंद्र सरकार की नाकामियों के साथ साथ उन योजनाओं की चर्चा भी करनी है, जो कांग्रेस सरकारों ने जनता को दिया और जिसका लाभ आज भी लोगों को मिल रहा है। दिल्ली सहित देश के विभिन्न राज्यों में यह कार्यक्रम सफलता से चल भी रहा है।

यूपी में शुरुआत तक नहीं

लेकिन जिस कार्यक्रम के बहाने कांग्रेस अपने कैडर को उत्साहित करना चाहती है और जनता में अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाहती है, वह यूपी में अभी तक शुरू ही नहीं हो पाई। 26 जनवरी को इस कार्यक्रम को हर जिले-ब्लॉक स्तर तक मनाया जाना था, लेकिन उस दिन पूरे प्रदेश में कोई कार्यक्रम नहीं हो सका। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बृजलाल खाबरी स्वयं ही किसी कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। योजना की तैयारी की पहली बैठक ही 12 फरवरी को हो पाई, जब राज्य में कार्यक्रम के कन्वीनर दीपेंद्र हुड्डा पहली बार तैयारियों का जायजा लेने लखनऊ पहुंचे। उन्होंने योजना को आगे बढ़ाने की बात कही।

सपा का विकल्प बनने की संभावना

यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने पार्टी को मजबूत बनाने की हर संभव कोशिश की थी। लेकिन पूरा चुनाव ‘भाजपा बनाम सपा’ के बीच सिमट जाने के कारण कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ और वह अब तक की सबसे कम सीट संख्या पर पहुंच गई। चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा का विकल्प देखने के इच्छुक मतदाताओं, विशेषकर मुसलमानों, दलितों और पिछड़ों ने एक जुट होकर सपा को समर्थन दिया। लेकिन इसके बाद भी सपा योगी आदित्यनाथ सरकार को हटाने में असफल रही।

कांग्रेसी रणनीतिकारों का मानना है कि जनता योगी आदित्यनाथ सरकार का विकल्प तो खोज रही थी, लेकिन अखिलेश यादव वह विकल्प देने में असफल रहे। 2014, 2017, 2019 और 2022 के लगातार चार बड़े चुनावों में सपा भाजपा का विकल्प बनने में असफल रही। इसका कारण उसके साथ अपराधी छवि के लोगों के जुड़ने और पार्टी नेताओं के आपसी मतभेद को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

ऐसे में कांग्रेस नेताओं की उम्मीद है कि यदि जनता के सामने एक मजबूत विकल्प पेश किया जाए, तो गैर भाजपाई मतदाताओं की पहली पसंद बदल सकती है। सपा से निराश जनता विकल्प के लिए बसपा की ओर नहीं जा सकती, क्योंकि मायावती अपेक्षाकृत जमीनी लड़ाई में पिछड़ रही हैं। साथ ही उन पर भाजपा से सांठगांठ करने का आरोप भी लगता रहा है। ऐसे में मतदाता कांग्रेस की ओर लौट सकता है। जिस तरह कांग्रेस ने अकेले दम पर केंद्र और यूपी सरकार को उसकी असफलताओं पर घेरा है, उसका यह दावा और ज्यादा मजबूत हुआ है।

कठिन मेहनत करनी होगी

राजनीतिक विश्लेषक सुनील पांडे ने अमर उजाला से कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस को लाभ मिल सकता है। लेकिन इसके लिए उसे कठिन जमीनी संघर्ष से होकर गुजरना होगा। यूपी विधानसभा चुनाव के बाद से पार्टी ने अब तक प्रदेश में कोई बड़ा धरना-प्रदर्शन नहीं किया है और उसके शीर्ष नेताओं ने आराम को प्राथमिकता दी है। ऐसे में कांग्रेस उस भाजपा का मुकाबला नहीं कर पायेगी जो 24 घंटे चुनावी मोड में रहती है।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस का यूपी का नया नेतृत्व भी अभी तक कोई छाप छोड़ने में असफल रहा है। बृजलाल खाबरी को प्रदेश में संगठन की कमान देते हुए पार्टी की उम्मीद थी कि वे पार्टी को दलित-पिछड़े वर्गों में मजबूत बनाने का काम करेंगे, लेकिन अब तक वे ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं कर पाए हैं, जिससे इन वर्गों का कांग्रेस की तरफ वापसी होने का संकेत मिलता हो। कांग्रेस को दिन-प्रतिदिन की रणनीति बनाते हुए मजबूत नेतृत्व के साथ जमीन पर उतरना चाहिए। तभी वह यूपी और केंद्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के सपने संजो सकती है।

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