UP Politics: हर बार क्यों फेल हो रहा है मायावती का ‘एक्सपेरिमेंट’, क्या अब यही रास्ता बचा है बसपा के पास?

[ad_1]

UP Politics: Why is BSP supremo Mayawati's political experiment failing every time in uttar pradesh

बसपा सुप्रीमो मायावती।
– फोटो : Amar Ujala (File Photo)

विस्तार

उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों के परिणाम आने के बाद सबसे बड़ी चिंता बहुजन समाज पार्टी को सता रही है। दरअसल लगातार चुनावों में बसपा के गिरते ग्राफ से न सिर्फ पार्टी का वोट बैंक खिसक रहा है, बल्कि पार्टी के कद्दावर नेताओं का भी विश्वास डगमगा रहा है। पार्टी के रणनीतिकारों के मुताबिक सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि अगले साल लोकसभा का चुनाव है और पार्टी निकाय चुनावों में मुसलमानों पर दांव लगाकर एक बार फिर से पूरी तरह फ्लॉप हो गई है। ऐसे में पार्टी के भीतर अब चर्चा इस बात की हो रही है कि क्या एक बार फिर से बहुजन समाज पार्टी को दोबारा से सक्रिय होने के लिए एक मजबूत गठबंधन की बेहद आवश्यकता है। पार्टी से जुड़े नेताओं का मानना है कि इस पर फैसला बसपा सुप्रीमो मायावती को ही लेना है। हालांकि निकाय चुनावों में अपने बुरे प्रदर्शनों पर मायावती ने शुक्रवार को आपात बैठक बुलाकर समीक्षा करने की बात कही है।

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में आने वाले लोकसभा चुनावों के पहले के सेमीफाइनल की तरह ही सियासी फील्डिंग सजाई थी। सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ पॉलिटिकल रिसर्च एंड एनालिसिस के डायरेक्टर मनीष कुमार कहते हैं कि मायावती ने दलित और मुस्लिम राजनीति के गठजोड़ को बड़ा सियासी समीकरण मानते हुए यूपी में 17 मेयर की सीटों पर 11 मुसलमानों को टिकट देकर अपने सियासी इशारे साफ कर दिए थे। जब निकाय चुनाव के परिणाम आए, तो बसपा के लिए यह बेहद निराशाजनक रिजल्ट रहे। वह कहते हैं कि मायावती को बीते कुछ चुनावों में ऐसा लग रहा है कि दलित और मुस्लिम गठजोड़ से पार्टी का भला हो सकता है। मनीष के मुताबिक अब तक मायावती सोच भी ठीक रही थी, लेकिन इस वक्त के जो सियासी समीकरण हैं, उसके लिहाज से दलितों के वोट बैंक में भाजपा ने जबरदस्त तरीके से सेंधमारी की है और मुसलमानों का बसपा पर भरोसा कायम नहीं हो पा रहा है। बल्कि मायावती के मुसलमानों पर ज्यादा भरोसा करने की वजह से दलित भी उनसे छिटक कर दूर जा रहा है।

निकाय चुनाव में बसपा की हार के जो भी वजह रही हैं, लेकिन पार्टी से जुड़े नेता भी मानते हैं कि ज्यादा मुसलमानों को टिकट दिए जाने से पार्टी का अपना कोर वोट बैंक भी बहुजन समाज पार्टी से दूर चला गया। नतीजा हुआ कि पिछले चुनावों में दो सीट मेयर की बसपा के पास थीं, इस बार वह भी उनके हाथों से निकल गईं। निकाय चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक 2017 में मेरठ और अलीगढ़ में बहुजन समाज पार्टी को क्रमशः 43 फीसदी और 41 फ़ीसदी से ज्यादा वोट मिले थे। लेकिन इस बार मेरठ में बसपा को महज 11 और अलीगढ़ में सवा बारह फ़ीसदी ही वोट प्रतिशत मिल सका। आंकड़े बताते हैं कि नगर निगम में पिछली बार बहुजन समाज पार्टी के 147 पार्षद जीते थे। लेकिन इस बार यह 86 पर आकर सिमट गया। इसी तरह उत्तर प्रदेश के नगर पालिका में 29 सीटों पर बसपा के अध्यक्ष बने थे। इस बार यह संख्या महज 20 रह गई है। प्रदेश की सभी नगर पालिकाओं में 2017 के चुनावों में 262 वार्ड मेंबर हुआ करते थे, अब बसपा के महज 205 वार्ड मेंबर ही समूचे उत्तर प्रदेश के नगर पालिकाओं में रह गए हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश की नगर पंचायतों में 2017 के चुनावों में बसपा ने 45 अध्यक्ष जिताए थे। इस बार नगर पंचायतों में महज पांच सीटों की कमी के साथ 40 नगर पंचायत अध्यक्ष बहुजन समाज पार्टी के बने हैं।



[ad_2]

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *