Uttarakhand: टिहरी में खतरे की जद में आए 17 गांव, गुप्तकाशी में भी धंस रही है जमीन, डरावनी है ये तस्वीर

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टिहरी बांध प्रभावितों की पुनर्वास की समस्या का झील बनने के 12 साल बाद भी समाधान नहीं हो पाया है। प्रभावित परिवार भू-धंसाव के जद में आए घरों में रहने को मजबूर हैं लेकिन पुनर्वास निदेशालय की धीमी गति के कारण प्रभावितों का पुनर्वास नहीं हो पाया है।

टिहरी बांध की झील में अधिक जलभराव के कारण 2010-11 में हुए भू-धंसाव के कारण आसपास के 17 गांव के सैकड़ों परिवारों के घर और भूमि पर बड़ी-बड़ी दरारें आ गई थी जिसके बाद प्रशासन ने प्रभावित परिवारों को भूगर्भीय सर्वे कराया था। गांव के 415 परिवारों को पुनर्वास के लिए चिन्हित किया था। लंबे संघर्ष के बाद जनवरी 2021 में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री के नेतृत्व में हुई हाई पावर कमेटी ने चिन्हित परिवारों के पुनर्वास का निर्णय लिया था।

पुनर्वास निदेशालय ने दो साल में केवल रौलाकोट के 113, नंदगांव के 24, खांड, गडोली समेत कुल 214 परिवारों की पुनर्वास की सुविधा मुहैया करा पाया है जबकि भटकंडा (लुणेटा), सिल्ला उप्पू, उठड, पयालगांव, कैलबागी, पिपोला खास, पिपोला ढुंगमंदार, कैलबागी, स्यांसू आदि गांव के 201 परिवारों के पुनर्वास संबंधी प्रक्रिया लंबित पड़ी है। इससे प्रभावित परिवार खतरे की जद में रहने को मजबूर हैं।

बांध प्रभावित 214 परिवारों का पुनर्वास कर दिया है। तीन गांव के परिवारों के भुगतान की धनराशि के लिए टीएचडीसी को प्रस्ताव भेजा गया है। अन्य गांव के प्रभावित पुनर्वास के लिए पत्रावली तैयार की जा रही है।

-धीरेंद्र नेगी, अधिशासी अभियंता, अवस्थापना पुनर्वास टिहरी।

सुरंग से घरों व खेतों में आई दरारें

टिहरी जिले में ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए अटाली, गूलर, व्यासी और कौडियाला में बनाई जा रही सुरंग के कारण दर्जनों घर और खेतों में दरारें आ रही है। एडीएम रामजी शरण शर्मा ने बीते दिन प्रभावित गांवों में पहुंचकर ग्रामीणों की समस्याएं सुनी। ग्रामीणों ने बताया कि रेलवे की सुरंग के कारण लगातार घरों में दरारें पड़ रही है जिससे गांवों को खतरा उत्पन्न हो गया है। 

गुप्तकाशी में भी धंस रही है जमीन

केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव गुप्तकाशी भी सुरक्षित नहीं है। यहां चारों तरफ से धीरे-धीरे जमीन धंस रही है जो कभी भी बड़ी अनहोनी का कारण बन सकती है। बाजार में पानी की निकासी की व्यवस्था नहीं है जिससे बरसाती, स्रोतों व घरों का पानी जहां-तहां फैल रहा है। रावल व खाखर गदेरे के बहाव से भी बचाव के कोई इंतजाम नहीं हो पाए हैं। ग्राम पंचायत के साथ ही गुप्तकाशी केदारघाटी का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र भी है लेकिन यहां की सुरक्षा आज भी भगवान भरोसे है। बाजार का निचला हिस्सा भू-धंसाव की चपेट में है।

जोशीमठ से भी भयावह हो सकते हैं हालात

वहीं दोनों तरफ बहने वाले रावल व खाखर गदेरा बरसात में रौद्र रूप में बहते हैं जिससे संबंधित क्षेत्रों में हालात नाजुक हैं। विश्वनाथ मंदिर परिसर में गंगा-यमुना की जल धाराओं से निकलने वाले पानी की निकासी की आज तक कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है जिससे यह पानी रास्ते में जमा होने के साथ घरों तक पहुंच रहा है। पूर्व ग्राम प्रधान कमल सिंह रावत बताते हैं कि गुप्तकाशी में अनियोजित निर्माण के चलते बड़ा खतरा मंडरा रहा है। आपदा के बाद से भूधंसाव बढ़ा है जिससे कई घर, दुकानें खतरे की जद में आ चुके हैं। समय रहते यहां सुरक्षा के ठोस इंतजाम नहीं किए गए तो हालात जोशीमठ से भी भयावह हो सकते हैं। 

-गुप्तकाशी में मूलभूत सुविधाओं के विकास के साथ भूस्खलन व भू-धंसाव को रोकने के स्थायी इंतजाम किए जाएंगे। इस संबंध में मुख्यमंत्री से वार्ता कर क्षेत्र का सर्वेेक्षण भी कराया जाएगा। 

– शैलारानी रावत, विधायक, केदारनाथ विस 

ल्वाणी गांव में भी मकानों में दरारें, कई लोग छोड़ चुके घर

देवाल ब्लॉक देवाल के ल्वाणी गांव में हो रहे भू-धंसाव के कारण कई लोग अपने पैतृक घरों को छोड़ चुके हैं। यह गांव डेढ़ दशक से भू-धंसाव की चपेट में है। यहां कई मकानों में गहरी दरारें पड़ी हैं जो हर साल बढ़ती जा रही हैं। डेढ़ दशक पहले जहां 180 से अधिक परिवार रहते हैं अब यहां 70 परिवार ही रह गए हैं। ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर इस गांव का विस्थापन करने और गांव का भूगर्भीय सर्वे कराने की मांग की। देवाल ब्लॉक के ल्वाणी गांव के ऊपर दरार व गांव के नीचे की भूमि धंसने से इस गांव का अस्तित्व खतरे में है। इस गांव में डेढ़ दशक पहले 180 से अधिक परिवार रहते थे लेकिन अब अधिकांश परिवारों 110 ने यहां से पलायन कर लिया है। अब यहां 70 परिवार ही रहते हैं।



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