मलियाना नरसंहार: मंजर याद कर कांप जाती है रूह, दंगाइयों ने जलती आग में फेंक डाले मासूम, 106 मकान हुए थे स्वाह

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23 मई सन 1987 का वह खौफनाक दिन याद कर आज भी मेरठ स्थित मलियाना के लोगों की रूह कांप जाती है। भले ही आज वह लोग एक साथ मिलजुल रह रहे हों, लेकिन उस दिन को याद कर आज भी उनकी आंखों में आंसू बहने लगते हैं।  

दंगे के पीड़ित परिवारों का कहना था कि जालिमों ने उनके छोटे-छोटे बच्चों को भी नहीं बख्शा था। हर तरफ चींख-पुकार थी, जान बचाने के लिए चोरों तरफ भागदौड़ मची थी, लेकिन लोग जिस तरफ भी भागते उसी तरफ से गोली चल रही थी। इस दंगे में 74 लोगों ने अपनी जान गंवाई तो सैकड़ों लोग घायल हुए। पुलिस ने घायलों को वादी बनाकर दूसरे समुदाय के 93 लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज करा दिया। करीब 36 साल बाद शनिवार को फैसला आया तो मुस्लिम पक्ष के लोगों में मायूसी थी और दूसरे पक्ष के लोगों में खुशी दिखाई दी। हालांकि दोनों पक्षों के लोगों ने न्याय पालिका के फैसले को सही बताया।  

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मलियाना के शेखान चौक निवासी याकूब अली (66) ने बताया कि 21 मई को मलियाना में भारी मात्रा में पीएसी आई थी। पीएसी के अधिकारियों ने पूरे मलियाना का निरीक्षण किया था। भारी मात्रा में पीएसी को देख लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ था और कोई भी व्यक्ति अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहा था। सबके मन में बस एक ही डर बना हुआ था कि पता नहीं क्या होने वाला है। 

22 मई का दिन शांतिपूर्वक बीत गया तो लोगों ने कुछ राहत महसूस की, लेकिन 23 मई की सुबह 10 बजे जब दोबारा से पीएसी आई तो पूरे मलियाना की घेराबंदी कर दी और एक-एक घर में घुसकर लोगों को गोलियां मारनी शुरू कर दी। दूसरे समुदाय के कुछ लोगों ने लूटपाट मचाते हुए घरों में आगजनी कर दी। आगजनी होते ही चारों ओर मौत का मंजर दिखाई देने लगा। 


फरिश्ता बनकर आई टीपीनगर पुलिस 

मोहम्मद याकूब ने बताया कि वह भी जान बचाकर भाग रहे थे। पीएसी के जवानों ने उन्हें पकड़ लिया। इसके बाद डंडों से उन्हें बुरी तरह पीटा, जिसमें उनके हाथ और पैर टूट गए थे। पीएसी के जवान उन्हें जंगल में ले गए, वहां जाकर देखा तो 6-7 युवक पहले से ही पकड़े हुए थे। एक अधिकारी ने गोली मारने की आदेश दिए। तभी टीपीनगर थाने के एक दरोगा पुलिसकर्मियों के साथ वहां पहुंच गए और उनकी जान बचाई। बाद में पुलिस ने उन्हें ही वादी बनाकर 93 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया था। वो काला दिन जब उन्हें याद आता है तो रात में वह ठीक से सो नहीं पाते। 


106 मकान चढे़ थे आग की भेंट 

मलियाना दंगे के पीड़ितों ने बताया कि उस में 106 मकान आग की भेंट चढ़े थे। लोग जान बचाकर भाग रहे थे और दंगाई घरों में घुसकर लूटपाट करने के बाद आग लगा रहे थे। उन लोगों के पास सिर्फ पहने हुए ही कपड़े बचे थे। बाकी सबकुछ जलकर राख हो चुका था। मामला शांत होने के बाद उन्हें अपने घावों को भरने में दशकों बीत गए थे। अब भी जब-जब कोर्ट की तारीख आती थी तो वह लोग रातभर सो नहीं पाते थे। उनकी आंखों के सामने सिर्फ वही मंजर घूमता रहता था। गवाहों में भी कुछ लोग गवाही नहीं दें सके। कुछ की मौत हो गई तो कुछ शहर छोड़कर दूसरे शहरों जा बसे। इसके बाद उन लोगों ने वापस शहर  में आकर नहीं देखा। 


फैसले पर देर रात तक रही चर्चा

अदालत का फैसला आने के बाद शेखान चौक पर लोगों का जमावड़ा लग गया था। लोगों में बस 1987 के दंगे की चर्चा थी। लोगों का कहना था कि उनको पहले से मालूम था कि यह सब लोग बरी होने हैं। हालांकि किसी ने भी खुलकर फैसले को गलत नहीं बताया। दबी जुबान में सभी का यही कहना था कानून पर पूरा भरोसा है। अदालत ने जो फैसला सुनाया वह मान्य है।


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