[ad_1]

इलाहाबाद हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लोगों के मानवाधिकार के प्रति कुछ वर्षों से सक्रियता बढ़ी है। वर्तमान में जेल में निरूद्ध किए जा रहे किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज के हित के बीच संतुलन की समझ की आवश्यकता है। इसलिए दोनों के बीच इस तरह के संतुलन को बनाए रखने के लिए यह विचार करना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है कि जब तक कोई मजबूत आधार न हो, जैसे कि अभियुक्त के भागने की संभावना, उसके द्वारा सबूतों से छेड़छाड़ करने या मामले के गवाह या पीडि़त को धमकी देने की संभावनाएं न हो तब तक किसी अभियुक्त को हिरासत में लेने से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसे दिए गए उसके मौलिक अधिकार यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
कोर्ट ने राजस्थान बनाम बालचंद उर्फ बलिए 1978 के आदेश का भी हवाला दिया। कहा कि मूल नियम को शायद जमानत के रूप में रखा जा सकता है। जेल नहीं। इसे आधार बनाने के लिए संविधान के तहत एक अभियुक्त को अनुच्छेद 21 के तहत दिया गया अधिकार है। किसी व्यक्ति की हिरासत उसके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को प्रभावित करती है और हिरासत का मुख्य उद्देश्य बिना किसी असुविधा के मुकदमे के लिए आरोपी की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
[ad_2]
Source link