Bombay Blood Group : बॉम्बे से क्यों जुड़ा ब्लड ग्रुप का नाम, किन लोगों में यह मिल सकता है; जानें क्यों चर्चा

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जांच केंद्र वाले भी अमूमन एचएच ग्रुप या बॉम्बे ब्लड ग्रुप की रिपोर्ट नहीं देते हैं।

विस्तार


जिम्मेदार पत्रकारिता करने वालों का ध्यान शुक्रवार को पटना पर रहेगा। 14 साल की उस बच्ची पर रहेगा, जो डेंगू से पीड़ित होकर अपने रेयरेस्ट ऑफ रेयर ब्लड ग्रुप के रक्त का इंतजार कर रही है। यह सचमुच रेयरेस्ट ऑफ रेयर ब्लड ग्रुप है, क्योंकि हर दिन लाखों लोग खून की जांच कराते हैं मगर उनकी रिपोर्ट में इस ग्रुप का नाम नहीं आता। खून की जांच आजकल स्कूल में दाखिले के समय ही करा ली जाती है, लेकिन इस बच्ची के अम्मी-अब्बू को उसके ग्रुप की जानकारी कल तक नहीं थी। पटना में अमूमन सभी सरकारी-प्राइवेट बड़े अस्पतालों ने ओ पॉजिटिव खून से उसकी मैचिंग कराई, लेकिन आम लोगों के सामूहिक प्रयास से शुरू मां ब्लड सेंटर में सेवा दे रहे पीएमसीएच के रिटायर्ड रक्त अधिकाेष प्रभारी डॉ. यूपी सिन्हा ने रासायनिक जांच के बाद इस ग्रुप का ब्लड होने की जानकारी दी। ‘अमर उजाला’ ने गुरुवार रात ही कई एक्सपर्ट से बात की तो कई रोचक तथ्य सामने आए। 

1952 में बॉम्बे में हुई थी इसकी खोज

इस ब्लड ग्रुप का केस भी जल्दी नहीं आता है और शायद आता भी हो तो गलत खून चढ़ाए जाने या मैचिंग नहीं होने के कारण मरीज को भारी परेशानी झेलनी पड़ती होगी। कई की जान भी गई होगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसा कहना इसलिए भी संभव है, क्योंकि इस ग्रुप के बारे में पूछे जाने पर कई डॉक्टरों ने किताबों के आधार पर ही जानकारी दी- “Bombay Blood Group को HH blood group भी कहा जाता है। यह एक दुर्लभ रक्त फेनोटाइप है। इसकी खोज 1952 में डॉ. वाई. एम. भेंडे ने की थी। चूंकि यह खोज तत्कालीन बॉम्बे में हुई थी, इसलिए इसे बॉम्बे ब्लड ग्रुप ही ज्यादा कहा जाता है। मेडिकल की किताबों में बताया गया है कि यह रक्त फेनोटाइप अधिकतर भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और मध्य-पूर्व क्षेत्र के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।”

40 लाख लोगों में कोई एक ऐसा होगा

राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल PMCH के रक्त अधिकोष प्रभारी रहे और फिलहाल मां ब्लड सेंटर में समाजसेवा करते हुए जुड़े डॉ. यूपी सिन्हा के अनुसार विश्व स्तर पर करीब 40 लाख लोगों में से कोई एक Bombay Blood Group या HH blood group का निकलता है। इस ग्रुप की पहचान भी आसान नहीं है, इसलिए ऐसे मरीजों को कई तरह का खतरा रहता है। माना जाता है कि भारत में साढ़े सात हजार से 10 हजार लोगों में से एक व्यक्ति इस समूह का रक्त लिए पैदा होता है।” ब्लड मैन मुकेश हिसारिया ने बताया कि उन्होंने सैकड़ों रक्तदान शिविरों की रिपोर्ट में यह ग्रुप नहीं देखा था। इसलिए जब इस ग्रुप की जानकारी हुई तो खतरा भांपते हुए देश के सभी महानगरों में इस ग्रुप के रक्त की खोज की गई और यह खोज मुंबई में जाकर खत्म हुई।

कैसे लोगों में इस ग्रुप का रक्त संभव

मेडिकल जर्नल के अनुसार, दक्षिण एशिया में इस ग्रुप के लोग ज्यादा पाए जाते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि सजातीय प्रजनन (Inbreeding) और करीबी समुदायों में विवाह से इस ग्रुप के रक्त वाले बच्चे होने की आशंका रहती है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि के भी उन इलाकों में ऐसे रक्त वाले बच्चों का जन्म ज्यादा होता है, जहां एक ही वंश की किसी पीढ़ी या उसी पीढ़ी के दो युगल विवाह करते हैं। ऐसे रक्त वाले बच्चे होने पर आशंका कहे जाने का मतलब यह है कि जरूरत पड़ने पर इसके डोनर का मिलना मुश्किल होता है। देश में करीब 400 ही इस ग्रुप के डोनर हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, चार रक्त समूह A, B, AB और O सबसे सामान्य हैं। इनमें भी पॉजिटिव वाले अमूमन मिल जाते हैं, लेकिन निगेटिव वालों का मिलना मुश्किल होता है। ओ ग्रुप और बॉम्बे ब्लड ग्रुप की पहचान में कई बार भ्रम होता है, जो पटना में ताजा केस में भी हुआ। ओ समूह में एंटीजन एच होता है, जबकि बॉम्बे ब्लड ग्रुप में कोई एंटीजन नहीं होता है। रोचक यह भी है कि किसी दूसरे या खासकर भ्रम में ओ ग्रुप का खून चढ़ाने पर बॉम्बे ब्लड ग्रुप के मरीज की जान खतरे में आ जाती है, दूसरी तरफ इस ग्रुप का व्यक्ति A, B, O रक्त समूह के मरीज को रक्तदान कर सकता है।

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