Flash Back: 70 साल पहले प्रत्याशी चयन को लेकर कांग्रेस हुई थी दो फाड़, पढ़ें – ये रोमांचक किस्सा

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– फोटो : सोशल मीडिया

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चुनावी चर्चा के बीच राजनीति के रणनीतिकारों के रोमांचक किस्से भी हैं। बात करीब 70 साल पहले की है। उपचुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर कांग्रेस दो फाड़ हो गई थी। पार्टी से बगावत कर बलदेव सिंह ने निर्दल लड़कर चुनाव जीता तो विधायक, जिलाध्यक्ष व जिला परिषद अध्यक्ष को पार्टी की सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया। तब यह खबर पाकिस्तान रेडियो पर भी जोरशोर से प्रसारित हुई थी। 1950 में कांग्रेस में गुटबंदी चरम पर थी।

एक गुट की अगुआई मनकापुर के राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह और दूसरे का नेतृत्व विधायक चंद्रभान शरण सिंह कर रहे थे। 1954 में चंद्रभान शरण सिंह की मौत हो गई। उपचुनाव में टिकट के लिए फिर मारामारी शुरू हो गई। तत्कालीन जिलाध्यक्ष राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली जिला कमेटी ने सर्वसम्मति से मनकापुर राज के नायब बलदेव सिंह के नाम की संस्तुति की। पार्टी की प्रदेश इकाई ने भी मुहर लगाई। लेकिन पार्लियामेंट्री बोर्ड ने प्रस्ताव ठुकराते हुए पूर्व विधायक ईश्वर शरण को टिकट देने का निर्णय लिया। 

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उस समय कांग्रेस के प्रदेश कमेटी में भी दो गुट थे। एक की चंद्रभान गुप्ता और डा. संपूर्णानंद तो दूसरे की कमान कद्दावर नेता मोहनलाल गौतम के हाथों में थी। पहले गुट ने पचपुती जगतापुर (कोल्हारगांव) निवासी बलदेव सिंह का तो दूसरे ने नगर पालिका सिटी बोर्ड के अध्यक्ष बाबू ईश्वर शरण का समर्थन किया।

दो विधायक और जिलाध्यक्ष निष्कासित, जिला कमेटी भंग

बलदेव सिंह ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में ताल ठोंक दी और उपचुनाव में विजयश्री हासिल कर लिया। इस पर प्रदेश कमेटी ने उन्हें अनिश्चित काल के लिए पार्टी से निकाल दिया। राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली जिला कमेटी को भंग कर इंद्रासन सिंह को कार्यवाहक जिलाध्यक्ष नियुक्त किया गया। 18 दिसंबर 1955 को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तत्कालीन महामंत्री महावीर प्रसाद गुप्ता गोंडा आए और जांच के लिए नेवल किशोर को जिम्मा सौंपा। जांच कमेटी की रिपोर्ट पर मनकापुर के विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह व जिला परिषद के अध्यक्ष ठाकुर नवरंग सिंह समर्थकों के साथ पार्टी से निष्कासित कर दिए गए। इसके बाद जिला कमेटी के संचालन के लिए गठित तदर्थ समिति में लाल बिहारी टंडन अध्यक्ष और संतबख्श सिंह व शांतिचंद्र शुक्ल मंत्री बनाए गए। पार्टी के निर्णय से नाराज राजा राघवेंद्र प्रताप सिंह ने बाबू ईश्वर शरण के खिलाफ अविश्वास पारित करा दिया।

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