Hathras News: गोकाष्ट से होगा होलिका दहन, गोशाला में महिलाएं बना रही हैं गोबर की लकड़ियां

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गोकाष्ठ बना रहीं महिलाएं

गोकाष्ठ बना रहीं महिलाएं
– फोटो : अमर उजाला

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आपने पंचगव्य के बारे में सुना होगा। अब उस पंचगव्य में से गोबर की उपयोगिता में स्वयं सहायता समूह ने नवाचार कर दिखाया है। समूह की महिलाएं पराग डेयरी स्थित गोशाला में गोकाष्ट बना रही हैं। इस बार होली में इसी गोकाष्ट से होलिका दहन होगा।

जिले में जिलाधिकारी अर्चना वर्मा की पहल पर स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के माध्यम से सासनी स्थित पराग डेयरी में गोबर की लकड़ी तैयार की जा रही हैं। इस इकाई के शुरू होने से जहां लकड़ी के लिए पेड़ों का कटान कम होगा, वहीं धुआं कम होने से पर्यावरण के लिए भी यह कम नुकसानदेह साबित होगी।

स्वयं सहायता समूह के जरिए महिलाओं को भी रोजगार मुहैया हो रहा है। वहीं इस बार होने वाली होलिका स्थलों पर सरकारी होली में इन लकड़ियों का ही प्रयोग किया जाएगा। इस समूह के जरिये इन लकड़ियों का अंतिम संस्कार के लिए भी बिक्री की जाएगी। अब तक 6 टन से अधिक लकड़ी को तैयार किया जा चुका है।

ऐसे तैयार होती है गोबर की लकड़ी तैयार

गोबर से लकड़ी तैयार करने के लिए दो दिन तक गोबर को सुखाया जाता है। नमी कम होने पर मशीन में डालकर घुमाया जाता है। इसके बाद लकड़ी तैयार की जाती है। लकड़ी को तैयार होने के बाद इसे जलाने के लिए एक दिन पूरी तरह से सूखाया जाता है।

6 क्विंटल लकड़ी तैयार होने से बचेगा एक पेड़

गोबर की लकड़ी का उत्पादन करने से पेड़ों के कटान में कमी आएगी। विभागीय अधिकारियों के अनुसार अगर गोबर से छह क्विंटल जलौनी लकड़ी तैयार की जाए तो एक पेड़ को कटने से बचाया जा सकता है, इससे पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।

गोबर के उपलों से अधिक सुरक्षित है गोबर की लकड़ी

गांवों में ज्यादातर गोबर के उपले जलाने में प्रयोग किए जाते हैं। गोबर में मिथेन गैस की अधिकता होने के कारण इसे जलाने पर धुआं भी ज्यादा निकलता है, जबकि गोकाष्ट को होलो सिलिंडर की आकृति में तैयार किया जाता है। लकड़ी के बीच में छेद होने पर जलाने पर हवा पास होती है और आसानी से जलने के साथ धुआं भी कम होता है।

इस इकाई के संचालन से महिलाओं को रोजगार के अवसर खुले हैं। निर्माण इकाई से मिलने वाली आमदनी की 80 फीसदी धनराशि स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को दी जाएगी। इस बार होलिका दहन में भी गोबर की लकड़ी का प्रयोग किया जाएगा। – रंजन कुमार, जिला प्रबंधक, एनआरएलएम।

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