HP High Court: मोटर वाहन दुर्घटना के मामलों को आपराधिक मामले की तरह साबित करने की जरूरत नहीं

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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

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– फोटो : अमर उजाला

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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मोटर वाहन दुर्घटना से जुड़े मामले में अहम व्यवस्था दी है। अदालत ने कहा कि मोटर वाहन दुर्घटना के मामलों को आपराधिक मामले की तरह साबित करने की जरूरत नहीं है।  न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों को कोर्ट और ट्रिब्यूनल को एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। दावेदार को सख्त सुबूत निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें केवल प्रधानता की कसौटी पर अपना मामला स्थापित करना होता है। अदालत ने कहा कि सुबूत का स्तर संभावनाएं और उचित संदेह से परे साबित किए जाने का सिद्धांत मोटर वाहन दुर्घटना मामलों में लागू नहीं किया जा सकता है। वाहन दुर्घटना और मुआवजा से जुड़े मामलों का निपटारा करते हुए यह निर्णय सुनाया। 

अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता मृतक की बेटी है, जो झारखंड राज्य से संबंध रखती है। यह अनुचित होगा कि उससे मामले को साबित करने के लिए सख्त सुबूत पेश करने को कहा जाए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता सिर्फ दुर्घटना को साबित कर सकता है, लेकिन यह दुर्घटना कैसे हुई, इसे साबित नहीं किया जा सकता। मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के माता-पिता की मृत्यु वाहन चालक की लापरवाही के कारण हुई थी। मृतक वाहन में सामान के मालिक के तौर पर सफर कर रहे थे। चालक की तेजरफ्तारी और लापरवाही के कारण वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया और याचिकाकर्ता के माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। अदालत ने दोनों मृतक की अकेली आश्रित बेटी को 45.93 लाख रुपये का मुआवजा अदा करने के आदेश दिए। 

एचआरटीसी को देना होगा 1.13 लाख रुपये का मुआवजा
हिमाचल पथ परिवहन निगम को जिला अदालत ने 1.13 लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। वाहन दुर्घटना में मृतक के आश्रितों को अदालत ने मुआवजे का हकदार ठहराया है। वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण शिमला ने मुआवजे की राशि पर छह फीसदी ब्याज अदा करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि मुआवजे की राशि दो महीनों के भीतर बस ड्राइवर और निगम दोनों को देनी होगी। 23 सितंबर, 2020 को मृतक हाईकोर्ट में पेशी भुगत कर अपने घर जा रहा था। टॉलैंड के पास जब वह सड़क के किनारे से जा रहा था तो निगम की बस ने उसे टक्कर मारी। इस दुर्घटना में उसे गंभीर चोटें आईं और अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई। मृतक के आश्रितों ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण शिमला के समक्ष मुआवजे के लिए याचिका दायर की। दलील दी गई कि इस दुर्घटना का मुख्य कारण चालक की लापरवाही थी। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद आश्रितों की ओर से मुआवजे के लिए दायर की गई याचिका को स्वीकार किया और 1,13,68,400 रुपये का मुआवजा अदा करने के आदेश दिए।

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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मोटर वाहन दुर्घटना से जुड़े मामले में अहम व्यवस्था दी है। अदालत ने कहा कि मोटर वाहन दुर्घटना के मामलों को आपराधिक मामले की तरह साबित करने की जरूरत नहीं है।  न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों को कोर्ट और ट्रिब्यूनल को एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। दावेदार को सख्त सुबूत निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें केवल प्रधानता की कसौटी पर अपना मामला स्थापित करना होता है। अदालत ने कहा कि सुबूत का स्तर संभावनाएं और उचित संदेह से परे साबित किए जाने का सिद्धांत मोटर वाहन दुर्घटना मामलों में लागू नहीं किया जा सकता है। वाहन दुर्घटना और मुआवजा से जुड़े मामलों का निपटारा करते हुए यह निर्णय सुनाया। 

अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता मृतक की बेटी है, जो झारखंड राज्य से संबंध रखती है। यह अनुचित होगा कि उससे मामले को साबित करने के लिए सख्त सुबूत पेश करने को कहा जाए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता सिर्फ दुर्घटना को साबित कर सकता है, लेकिन यह दुर्घटना कैसे हुई, इसे साबित नहीं किया जा सकता। मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता के माता-पिता की मृत्यु वाहन चालक की लापरवाही के कारण हुई थी। मृतक वाहन में सामान के मालिक के तौर पर सफर कर रहे थे। चालक की तेजरफ्तारी और लापरवाही के कारण वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया और याचिकाकर्ता के माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। अदालत ने दोनों मृतक की अकेली आश्रित बेटी को 45.93 लाख रुपये का मुआवजा अदा करने के आदेश दिए। 

एचआरटीसी को देना होगा 1.13 लाख रुपये का मुआवजा

हिमाचल पथ परिवहन निगम को जिला अदालत ने 1.13 लाख रुपये का मुआवजा देने के आदेश दिए हैं। वाहन दुर्घटना में मृतक के आश्रितों को अदालत ने मुआवजे का हकदार ठहराया है। वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण शिमला ने मुआवजे की राशि पर छह फीसदी ब्याज अदा करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि मुआवजे की राशि दो महीनों के भीतर बस ड्राइवर और निगम दोनों को देनी होगी। 23 सितंबर, 2020 को मृतक हाईकोर्ट में पेशी भुगत कर अपने घर जा रहा था। टॉलैंड के पास जब वह सड़क के किनारे से जा रहा था तो निगम की बस ने उसे टक्कर मारी। इस दुर्घटना में उसे गंभीर चोटें आईं और अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई। मृतक के आश्रितों ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण शिमला के समक्ष मुआवजे के लिए याचिका दायर की। दलील दी गई कि इस दुर्घटना का मुख्य कारण चालक की लापरवाही थी। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद आश्रितों की ओर से मुआवजे के लिए दायर की गई याचिका को स्वीकार किया और 1,13,68,400 रुपये का मुआवजा अदा करने के आदेश दिए।



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