Sushil Modi : राज्यसभा की पारी खत्म होते ही सुशील मोदी के कैंसर की सूचना; लोकसभा चुनाव पर कितना पड़ेगा असर?

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Bihar News Sushil Modi news creates eiarthquake in Bihar BJP before Narendra Modi visit for lok sabha election

सुशील कुमार मोदी ने खुद कैंसर की जानकारी दी।
– फोटो : अमर उजाला डिजिटल

विस्तार


चार अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में पहली चुनावी सभा कर रहे हैं। उसके एक दिन पहले बुधवार को सुशील कुमार मोदी का बतौर राज्यसभा सांसद कार्यकाल खत्म हुआ। और, इसी के साथ राजनीति में छोटे मोदी के नाम से मशहूर सुशील कुमार मोदी ने राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी। यह घोषणा चौंकाने वाली इसलिए थी, क्योंकि उन्होंने अपने कैंसर पीड़ित होने की जानकारी दी। वह भी छह महीने से जूझने की। यह भी बता दिया कि प्रधानमंत्री को बता दिया है और अब जनता को बताना था कि लोकसभा चुनाव में आपके बीच मौजूद नहीं रहेंगे। यह घोषणा मायने रखेगी, क्योंकि बिहार की राजनीति में सुशील कुमार मोदी को इनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है। भाजपा के लिए वह कितनी बार तारणहार बने, यह किसी से छिपा नहीं है। भाजपा ने उन्हें बिहार से हटा दिया, फिर भी।

भीष्म पितामह के बाद संभाली कमान, अब 14वें नंबर पर

दिसंबर 2020 से सुशील मोदी आज की तारीख तक राज्यसभा सांसद हैं। फिलहाल वह लोकसभा चुनाव के लिए घोषणा पत्र समिति सदस्य भी हैं, हालांकि इसका काम अब फाइनल की स्थिति में है। इसके बाद लोकसभा चुनाव के स्टार प्रचारक के रूप में भूमिका थी, जिसके लिए उन्होंने खुद की हालत के आधार पर हाथ जोड़ लिया। इस बार जारी स्टार प्रचारकों की सूची में सुशील मोदी चौदहवें नंबर पर थे, जबकि बिहार भाजपा के भीष्म पितामह कैलाशपति मिश्र के बाद दूसरा बड़ा नाम उनका ही रहा। स्टार प्रचारकों में चौदहवें नंबर पर भले ही सुशील मोदी चले गए थे, लेकिन वैश्य वोटरों के ध्रुवीकरण के अलावा वह आंकड़ों के मामले में सबसे आगे थे। अगर लोकसभा चुनाव के दौरान वह सक्रिय रहते तो आंकड़ों की समझ रखने वाले, यानी इस आधार पर वोट देने के लिए निकलने वालों के दिमाग पर उनकी बातों का असर होता। चाणक्या इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- “बिहार की जातीय जनगणना में 2.31 प्रतिशत जनसंख्या के साथ बनिया-वैश्य समाज को भाजपा का कोर वोट बैंक अगर माना जाता है तो इसके पीछे सुशील मोदी की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। उनकी जगह राज्यसभा भेजी गईं धर्मशीला गुप्ता इसी वर्ग से आती हैं, लेकिन सुशील मोदी की जगह लेना उनके लिए भी संभव नहीं। बिहार की नई सरकार में भाजपा एमएलसी दिलीप जायसवाल और कुढ़नी मुजफ्फरपुर के विधायक केदार प्रसाद गुप्ता मंत्री बने। वह भी प्रचार करेंगे। लेकिन, बनिया-वैश्य समाज में सुशील मोदी जैसी स्वीकार्यता बिहार में किसी की नहीं।”

लालू-नीतीश-सुशील का संबंध हमेशा रहा है सुर्खियों में

छात्र राजनीति में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी को त्रिमूर्ति कहा जाता था। लालू यादव और नीतीश कुमार, नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी का रिश्ता हमेशा चर्चा में रहा। सुशील मोदी 1990 से बिहार भाजपा के सक्रिय नेताओं में आगे रहे। जब लालू-नीतीश राजनीति में साथ हुए तो सुशील मोदी सामने खड़े नजर आए। फिर नीतीश और सुशील मोदी साथ हो गए और 2020 के विधानसभा चुनाव तक साथ ही रहे। नीतीश कुमार अंतिम समय तक उन्हें अपने साथ रखने के लिए अड़े रहे, लेकिन भाजपा ने उन्हें दिल्ली का रास्ता दिखा दिया।

जन-प्रतिनिधि के रूप में 1990 में आए थे चुनकर

भारतीय जनता पार्टी में जब कैलाशपति मिश्र का दौर चल रहा था, तब सुशील कुमार मोदी उभरने लगे थे। उस समय स्व. नवीन किशोर सिन्हा, मौजूदा बिहार विधानसभा के अध्यक्ष नंद किशोर यादव जैसे कुछेक नेता ही सुशील मोदी के आसपास नजर आए। सुशील कुमार मोदी 1990 में पहली बार बिहार विधानसभा में चुनकर आए और फिर लगातार तीन बार 2004 तक वह विधायक रहे। 1995 में उन्हें भाजपा विधायक दल का चीफ व्हिप भी बनाया गया। विधानसभा में वह 1996 से 2004 तक नेता प्रतिपक्ष के रूप में सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते नजर आए। आंकड़ों के साथ अपनी बातों को रखने के कारण वह मीडिया के लिए समाचार का एक सशक्त माध्यम भी रहे, इसमें कोई शक नहीं। इस बीच 2000 में बनी सात दिनों की सरकार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संसदीय कार्य मंत्री सुशील मोदी ही रहे थे। 

2006 से विधान परिषद्, फिर 2020 में राज्यसभा गए

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरह सुशील कुमार मोदी ने भी विधान परिषद् का रास्ता अख्तियार किया था, लेकिन एक ब्रेक के बाद। वह विधानसभा के बाद 2004 में लोकसभा गए। फिर 2005 तक सांसद रहे। सीएम नीतीश कुमार के दूसरे कार्यकाल में उनके साथ उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री बनने के लिए उन्हें विधान परिषद् का रास्ता मिला। नवंबर 2005 में बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी और 2006 से वह बिहार विधान परिषद् के सदस्य चुने जाते रहे। 2006 से 2012, फिर 2018 तक और फिर 2020 में राज्यसभा भेजे जाने तक वह इसी सदन के सदस्य रहे। जबतक वह बिहार की राजनीति में रहे, सीएम नीतीश कुमार के साथ सीधे जुड़े रहे। नवंबर 2005 से जून 2013 और जुलाई 2017 से नवंबर 2020 तक वह सरकार में डिप्टी के रूप में रहे। इस बीच नीतीश जब महागठबंधन के साथ गए और जुलाई 2013 से जुलाई 2017 तक भाजपा विपक्ष में रही तो सुशील कुमार मोदी ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में भूमिका निभाई।  

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