Uttarakhand: अब पूरे देश में बिकेगी चमोली की जड़ी-बूटियां, आयुष मंत्रालय ने 48 काश्तकारों को किया पंजीकृत

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पान सिंह ने 13 साल में 20 लाख की कुटकी बेची

देवाल ब्लॉक के वाण गांव के काश्तकार पान सिंह वर्ष 2009 से कुटकी और कूट की खेती कर रहे हैं। पान सिंह का कहना है कि बेमौसमी बारिश और वन्य जीवों से परेशान होकर उन्होंने पारंपरिक खेती के बजाय जड़ी-बूटी की खेती पर ध्यान दिया। पिछले 13 साल में वे लगभग 20 लाख रुपये की कुटकी बेच चुके हैं। अब वे जटामासी की खेती भी करने लगे हैं। गांव के करीब 70 काश्तकारों ने कुटकी की खेती शुरू कर दी है। वे ग्रामीणों को जटामासी, कूट, कुटकी की पौधे भी वितरित करते हैं। जटामासी अनिंद्रा, गर्मी और तनाव दूर करने की दवा बनाने के काम आती है।

आयुष मंत्रालय बनाएगा डोक्यूमेंट्री

हिमालय क्षेत्र के गांवों में जड़ी-बूटी कृषिकरण पर भारत सरकार का आयुष मंत्रालय एक डॉक्यूमेंट्री बनाने जा रहा है। आयुष मंत्रालय कुटकी की खेती के लिए 70 फीसदी की सब्सिडी पर ऋण देता है। इसी क्रम में मंत्रालय अब कुटकी की खेती, काश्तकारों की समस्याओं, अधिक से अधिक काश्तकारों को जड़ी-बूटी की खेती से जोड़ने के लिए डॉक्यूमेंट्री बना रहा है।

हम 2009 से कुटकी का उत्पादन कर रहे हैं। कुटकी की फसल तीन साल में एक बार तैयार होती है। शुरुआत में हमें इसका अच्छा दाम नहीं मिला, लेकिन अब इसकी डिमांड बढ़ती जा रही है। कारोबारी गांव में ही कुटकी खरीदने पहुंच रहे हैं। एक साल में डेढ़ से दो लाख रुपये कुटकी से कमा लेते हैं। -पारुली देवी, वाण गांव।

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कुटकी के फायदे

उच्च हिमालय क्षेत्रों में 2700 से 4500 मीटर की ऊंचाई पर पैदा होने वाली जड़ी-बूटी कुटकी खून साफ करना, ताकत, ज्वर और शुगर की दवा के रूप में काम आती है। कुटकी पीलिया, हेपिटाइटिस, एलर्जी, अस्थमा और त्वचा की बीमारियों के उपचार में भी काम आती है। इसके अलावा गठिया, रक्त विकार, हिचकी और उल्टी की दवाई के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है।

 

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